अंगदान महादान ,जीवनदान ……!

हम सभी जीवन के लिए एक निश्चित समय लिखवा कर लाये हैं। ईश्वर ने जितने भी क्षण लिखें हैं हम उतना ही जीयेंगे। मृत्यु एक शाश्वत सत्य हैऔर इसे न चाहते हुए भी हर कोई स्वीकारता है। मृत्यु के बाद परिवार वाले अपने समाज की रीति और रिवाज के अनुसार क्रियाकर्म कर देते हैं। उनका ये मानना है की सही ढंग से किया हुआ क्रियाकर्म ही आत्मा को मुक्ति दे कर परलोक पहुंचता है। इसी अन्धविश्वास के ही कारण अक्सर लोग दुर्घटना के केस में भी पोस्टमार्टम कराने से डरते हैं। कि शरीर को चीर -फाड़ के बाद मुक्ति नहीं मिलेगी। इन मान्यताओं को बढ़ावा देने में धर्मान्ध पंडितों का भी हाथ है जो अपनी रोजी रोटी चलती रहने के लिए ऐसी बातों को समाज में बने रहने का माहौल बनाये रखते हैं। और आम जनता नासमझ बन कर एक बड़े सहयोग को ठुकराती रहती है। ये गलत मान्यताएं है जो आज भी समाज में मानी जाती है और जिनका खमियाजा सबसे ज्यादा मेडिकल जगत भुगत रहा है। आज चिकित्सा जगत ने इतनी तरक्की कर ली है कि किसी एक की मृत्यु किसी दूसरे जरूरतमंद के लिए जीवन दान बन सकती है। और उसकी उस कमी को पूरा कर सकती है जो दुर्भाग्यवश उसके हिस्से आ गयी हो। जन्म से ही किसी अंग का खराब होना ,किसी रोग के चलते किसी अंग का कार्य प्रभावित होना , किसी दुर्घटना के कारण किसी अंग का नष्ट हो जाना , परिस्थितिवश किसी अंग के संचालन में बाधा आना ,ऐसे कई कारण हैं जिन के लिए सिर्फ एक ही उपचार काम आता है वह है अंग प्रत्यारोपण अर्थात ORGAN TRANSPLANT.

                    समाचार पत्र में पढ़ा कि चीन में एक तीन साल की बच्ची लियू ने मृत्यु के बाद 5 लोगों को जीवन दान दिया और उसके पिता ने गर्व से अपनी बेटी को एक राजकुमारी के रूप में माना। जिसने दान के जरिये जीवन बाँटा। ब्रेन ट्यूमर के कारण 25 सितंबर को उसकी मृत्यु हुई। उसका दिल ,जिगर ,दोनों किडनी ,कॉर्निया और बोन मेरो सभी कुछ दान कर दिया गया। हम भारतीय अपनी संकुचित धारणाओं में इतने बंधे हुए हैं कि ये सोच ही नहीं पाते कि जिन अंगों को जला कर या दफना कर ख़त्म कर देना है वह किसी के लिए अनमोल तोहफा है। सत्य घटना के तौर पर देखें कि मेरी एक बच्ची जन्मजात ही दिल की बीमारी से पीड़ित थी। उसका एकमात्र इलाज heart transplant था। दिल्ली के AIMS में दिखाने पर उन्होंने किसी दूसरे सामान उम्र के बच्चे के दिल के प्रत्यारोपण की बात कही। ये सुन कर मुझे दुःख हुआ क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि एक मेरी बच्ची को बचाने के लिए मैं किसी दूसरे बच्चे की मृत्यु की कामना करूँ। और फिर एक लम्बे समय तक सिर्फ इस आस में बैठना कि कब कोई उसी उम्र का बच्चा जाए तो मेरे बच्चे का उद्धार हो, ये गलत था। मेरी बच्ची इलाज के ही दौरान गुजर गयी पर मैंने ये महसूस किया कि यदि हम इस ओर जागरूक होते तो मेरी बच्ची को उसका सही इलाज मिल सकता था। 

                                           
 केंद्र सरकार ने एक नयी योजना के क्रियान्वयन की पहल की है जो universal health insurance mission के नाम से है। इस के तहत सभी राज्य सरकारों को अंगदान के लिए जागरूकता फ़ैलाने के किये पत्र लिखा गया हैं। उन्हें समुचित सुविधाएँ भी जुटाने के लिए कहा गया है जिस से दान किया जाने वाला अंग सुविधाओं के आभाव में ख़राब न हो। साथ ही रक्त दान को भी आवश्यक श्रेणी में रखा गया। इस तरह के सरकारी कार्यक्रम तभी सफल होनी जब हम अपनी सोच बदलेंगे। क्योंकि हम आमजन ही  ये निर्णय करेंगे कि हमें हमारें अपनों को मृत्यु के बाद भी जीवन देना है तो उनके अंगों को जरूरतमंद को दे दिया जाए। मृत्यु के बाद तो शरीर की कोई कीमत नहीं रहती लेकिन वो अंग जो अच्छे से कार्य कर सकते हैं उन्हें जला कर या दफना कर हम क्यों बर्बाद करते हैं। कोई दूसरा जो उस  की कमी से ग्रसित है उसे मदद मिल सकती है। अंग दान एक पुण्य का कार्य है। इसे बढ़ावा देने के लिए हमें अपनी सोच और धारणाओं में बदलाव लाना पड़ेगा।और इस से कई लोगों को नई जिन्दगी  दी जा सकती है। पहल करें और अमर हो जाएँ। . ………  

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