मर्यादा की आवश्यकता पहले पुरुष को .......!
कभी कभी जिन घटनाओं को शायद हम मामूली समझ कर दरकिनार कर देते है। आज कल उन्ही बहुत छोटी छोटी बातों को मुद्दा बना कर ठना ठनी होना आम सी बात हो गयी है। कई बार महज प्रचार के लिए भी इस का सहारा लिया जाता है। लेकिन इस में यदि एक महिला की गरिमा का प्रश्न है तो बहस जायज है। मध्यप्रदेश में इसी तरह का एक मामला सामने आया। जिस में सिवनी के निर्दलीय विधायक ने भाजपा की एक महिला नेता की साडी के पल्लू से सार्वजनिक स्थान पर हाथ साफ़ किया। किसी कार्यर्क्रम में मंच साझा कर रहें नेताओं में से एक विधायक ने पास बैठी महिला नेता के साडी के पल्लू से हाथ पोंछ लिया। इस पर महिला नेता ने इसे अभद्रता माना। और ये दलील दी कि कोई पारिवारिक रिश्ता न होने पर व्यावसायिक संबंधों में कोई ऐसा कैसे कर सकता है। और वह भी सार्वजनिक तौर पर तमाम लोगों के बीच।
अब इस घटना की गहराई में जाकर देखें कि वास्तव में कौन सही है या कौन गलत। पहली बात तो ये की वह एक राजनितिक कार्यक्रम था। इस तरह के कार्यक्रम में व्यक्तिगत कार्य शोभा नहीं देते। और इन कार्यक्रमों के द्वारा कोई भी घटना की खबर बहुत ही जल्दी मिडिया तक पहुँच जाती है। जिस से बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती। इस कारण कुछ भी करते या बोलते समय ये ध्यान होना चहिये कि वह मर्यादा की सीमा के अंदर हों। दूसरी बात किसी भी स्त्री का सार्वजनिक स्थान पर सम्मान आवश्यक है भले ही वह किसी भी रूप में रिश्ता से जुडी हो। जैसे अक्सर हमने देखा है कि राहुल गांधी ,सोनिया या इंदिरा जी को आदर देते हुए उनके नाम से ही सम्बोधित करते हैं न कि माँ या दादी। ये एक नियम है कि घरेलु संबंधों को सार्वजनिक स्तर पर प्रदर्शित करना उचित नहीं माना जाता। खासकर राजनीती में इस तरह का प्रदर्शन ओछेपन की निशानी समझा जाता है। तीसरी बात ये कि यदि वह इसे हास परिहास की नजर से देख रहे थे तो उस कार्यक्रम की संजीदगी का क्या जिस में शामिल होने के लिए वह सब एकत्रित हुए थे। वह कोई विनोद सम्बन्धी कार्यक्रम तो था नहीं एक राजनीतिक चर्चा के तहत आयोजित जन कार्यक्रम था जिस में जनता भी प्रत्यक्ष जुडी थी ऐसे में ये व्यव्हार अशोभनीय था। चौथी बात ये कि हर किसी के व्यक्तित्व की अपनी मर्यादा होती है। और उस मर्यादा का उलंघन उचित नहीं। सार्वजनिक स्थान पर शोभनीय व्यव्हार दोनों पक्षों का बेहतर चित्र सामने रखता है। इस लिए मर्यादा के सीमा का ज्ञान हो ये एक जरूरी मुद्दा हैं।
राजनीती में अपने स्तर को बेहतर बनाने के लिए आज नेता कुछ भी बयान देने से नहीं कतराते। और महिला से सम्बंधित तो रोजाना ही कुछ अप्रत्याशित सुनने को मिल ही जाता है। कभी वस्त्रों का चयन गलत है , कभी देर रात न निकला करें अपनी सुरक्षा की जिम्मेदार खुद बनें या तो कभी अपना चरित्र सुधारने का प्रयास करें ये हमेशा ही महिलाओं को सीख दी जाती रही है। इस का एक मात्र कारण नेताओं की खुद की घृणित मानसिकता है। जो स्त्री को हमेशा से ही प्रयोग की वस्तु समझती है। ऐसा नहीं तो भंवरी देवी जैसे व्यक्तित्व सामने नहीं आते जिन के जाल में सैकड़ों नेता गले तक फंसे हुए थे। उनका मकसद ये होता है कि स्त्री के जरिये उनकी जरूरत भी पूरी होती रहे और उनका नाम भी बना रहें। लेकिन जब स्त्री ने अपने प्रयोग की कीमत वसूलनी चाही तो उस की जान ले कर ही उन्हें खुद को बचाने का बेहतर तरीका नजर आया। स्त्री यदि गलत हुई भी तो उस का कारण ये परुष वर्ग ही है। क्योंकि जहाँ कुछ देने के नाम पर उस से कुछ पाने की लालसा ने जन्म लिया वही से ये देह व्यापार का प्रारम्भ हो जाता है। जिसे शायद नेता एक हाथ लेनी एक हाथ देनी कह कर उचित सिद्ध करते होंगे। मैंने भंवरी देवी को कभी भी गलत नहीं माना क्योंकि कोई भी स्त्री स्वेछा से गर्त में नहीं उतरती उसे परिस्थितियां और पुरुष मजबूर करते हैं। और जब भी उसने इस प्रयोग की कीमत मांगी है तब तब उसे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। इस लिए मर्यादा की जरूरत पहले परुषों को है। यदि उन्होंने अपनी निर्धारित सीमा समझ ली तो कभी भी किसी स्त्री को इस तरह आवाज नहीं उठानी पड़ेगी
कभी कभी जिन घटनाओं को शायद हम मामूली समझ कर दरकिनार कर देते है। आज कल उन्ही बहुत छोटी छोटी बातों को मुद्दा बना कर ठना ठनी होना आम सी बात हो गयी है। कई बार महज प्रचार के लिए भी इस का सहारा लिया जाता है। लेकिन इस में यदि एक महिला की गरिमा का प्रश्न है तो बहस जायज है। मध्यप्रदेश में इसी तरह का एक मामला सामने आया। जिस में सिवनी के निर्दलीय विधायक ने भाजपा की एक महिला नेता की साडी के पल्लू से सार्वजनिक स्थान पर हाथ साफ़ किया। किसी कार्यर्क्रम में मंच साझा कर रहें नेताओं में से एक विधायक ने पास बैठी महिला नेता के साडी के पल्लू से हाथ पोंछ लिया। इस पर महिला नेता ने इसे अभद्रता माना। और ये दलील दी कि कोई पारिवारिक रिश्ता न होने पर व्यावसायिक संबंधों में कोई ऐसा कैसे कर सकता है। और वह भी सार्वजनिक तौर पर तमाम लोगों के बीच।
अब इस घटना की गहराई में जाकर देखें कि वास्तव में कौन सही है या कौन गलत। पहली बात तो ये की वह एक राजनितिक कार्यक्रम था। इस तरह के कार्यक्रम में व्यक्तिगत कार्य शोभा नहीं देते। और इन कार्यक्रमों के द्वारा कोई भी घटना की खबर बहुत ही जल्दी मिडिया तक पहुँच जाती है। जिस से बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती। इस कारण कुछ भी करते या बोलते समय ये ध्यान होना चहिये कि वह मर्यादा की सीमा के अंदर हों। दूसरी बात किसी भी स्त्री का सार्वजनिक स्थान पर सम्मान आवश्यक है भले ही वह किसी भी रूप में रिश्ता से जुडी हो। जैसे अक्सर हमने देखा है कि राहुल गांधी ,सोनिया या इंदिरा जी को आदर देते हुए उनके नाम से ही सम्बोधित करते हैं न कि माँ या दादी। ये एक नियम है कि घरेलु संबंधों को सार्वजनिक स्तर पर प्रदर्शित करना उचित नहीं माना जाता। खासकर राजनीती में इस तरह का प्रदर्शन ओछेपन की निशानी समझा जाता है। तीसरी बात ये कि यदि वह इसे हास परिहास की नजर से देख रहे थे तो उस कार्यक्रम की संजीदगी का क्या जिस में शामिल होने के लिए वह सब एकत्रित हुए थे। वह कोई विनोद सम्बन्धी कार्यक्रम तो था नहीं एक राजनीतिक चर्चा के तहत आयोजित जन कार्यक्रम था जिस में जनता भी प्रत्यक्ष जुडी थी ऐसे में ये व्यव्हार अशोभनीय था। चौथी बात ये कि हर किसी के व्यक्तित्व की अपनी मर्यादा होती है। और उस मर्यादा का उलंघन उचित नहीं। सार्वजनिक स्थान पर शोभनीय व्यव्हार दोनों पक्षों का बेहतर चित्र सामने रखता है। इस लिए मर्यादा के सीमा का ज्ञान हो ये एक जरूरी मुद्दा हैं।
राजनीती में अपने स्तर को बेहतर बनाने के लिए आज नेता कुछ भी बयान देने से नहीं कतराते। और महिला से सम्बंधित तो रोजाना ही कुछ अप्रत्याशित सुनने को मिल ही जाता है। कभी वस्त्रों का चयन गलत है , कभी देर रात न निकला करें अपनी सुरक्षा की जिम्मेदार खुद बनें या तो कभी अपना चरित्र सुधारने का प्रयास करें ये हमेशा ही महिलाओं को सीख दी जाती रही है। इस का एक मात्र कारण नेताओं की खुद की घृणित मानसिकता है। जो स्त्री को हमेशा से ही प्रयोग की वस्तु समझती है। ऐसा नहीं तो भंवरी देवी जैसे व्यक्तित्व सामने नहीं आते जिन के जाल में सैकड़ों नेता गले तक फंसे हुए थे। उनका मकसद ये होता है कि स्त्री के जरिये उनकी जरूरत भी पूरी होती रहे और उनका नाम भी बना रहें। लेकिन जब स्त्री ने अपने प्रयोग की कीमत वसूलनी चाही तो उस की जान ले कर ही उन्हें खुद को बचाने का बेहतर तरीका नजर आया। स्त्री यदि गलत हुई भी तो उस का कारण ये परुष वर्ग ही है। क्योंकि जहाँ कुछ देने के नाम पर उस से कुछ पाने की लालसा ने जन्म लिया वही से ये देह व्यापार का प्रारम्भ हो जाता है। जिसे शायद नेता एक हाथ लेनी एक हाथ देनी कह कर उचित सिद्ध करते होंगे। मैंने भंवरी देवी को कभी भी गलत नहीं माना क्योंकि कोई भी स्त्री स्वेछा से गर्त में नहीं उतरती उसे परिस्थितियां और पुरुष मजबूर करते हैं। और जब भी उसने इस प्रयोग की कीमत मांगी है तब तब उसे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। इस लिए मर्यादा की जरूरत पहले परुषों को है। यदि उन्होंने अपनी निर्धारित सीमा समझ ली तो कभी भी किसी स्त्री को इस तरह आवाज नहीं उठानी पड़ेगी
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