शांतिपूर्ण प्रतिरोध की मिसाल …………!
इरोम शर्मीला चानू……… ये सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक ऐतिहासिक संघर्ष का प्रतिरूप बन गया है। सशस्त्र बल अधिकार कानून के खिलाफ जिस शिद्दत से उन्होंने संघर्ष का बिगुल बजाया उसे आज मणिपुर इम्फाल की जनता सराह रही है। 14 वर्ष बाद खुली हवा में सांस लेने का मौका इरोम के लिए एक नायाब तोहफे की तरह है। परन्तु उनके संघर्ष को एक लम्बी लड़ाई के बाद ही सफलता मिलेगी ऐसा लगता है। 2 नवंबर 2002 से अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठी इरोम को भारतीय दंड सहिंता की धारा 309 के तहत गिरफ्तार किया गया कि वह आत्महत्या करना चाहती है। जबकि वह तो शांतिपूर्ण ढंग से अपना प्रतिरोध दिखा कर इस कानून का विरोध कर रही थी जो एक सामान्य नागरिक को सामान्य जीवन जीने से रोक रहा था। अनशन के जरिये विरोध व्यक्त करने को कानून ने भी आत्महत्या की कोशिश मानने से इंकार किया। पर एक लम्बे समय से बिना अन्न ग्रहण किये उनकी स्थिति बिगड़ने पर नाक के जरिये जबरन आहार दे कर उनको बचाये रख सरकार ने उन्हें आत्महत्या का दोषी करार दिया। अब सवाल ये उठता है कि इरोम के प्रतिरोध को क्यों राजनितिक साजिश के तहत आत्महत्या बताया गया जबकि उन्होंने ऐसा कोई रास्ता नहीं अपनाया जो किसी अन्य को नुकसान पहुंचाता हों। नहीं तो आप खुद सोचे और समझे कि क्षेत्रवार संघर्षों के लिए अनेकों राज्यों में कई गुटों का जन्म हुआ और उन्होंने अपने स्वार्थसिद्धि के लिए खूब कत्लेआम और लूटपाट भी किये।
इरोम शांति का प्रतीक मानी जा सकती है कि किस तरह से उन्होंने अपनी बात का वज़न बढ़ने के लिए राह चुनी। आज की स्वार्थपरक दुनिया में एक सामाजिक मुद्दे के लिए स्वयं को तकलीफ देना काबिलेतारीफ है। आज हर कोई सिर्फ खुद के ही बारे में सोचता है खुद की तरक्की , खुद का जीवन ,खुद का अपार धन ,और खुद का स्वातंत्रय , ऐसे में इरोम के त्याग और किये की कदर की जानी चाहिए। इस सन्दर्भ से ये बात निकलती है की आम जीवन में भी हम क्या इरोम की तरह किसी मसले को शांतिपूर्ण ढंग से नहीं निपटा सकते ? हम और हमारा क्रोध आज समाज में इस तरह व्याप्त हो गया है कि आप कही भी देख लें प्यार और मिठास की भाषा गायब ही हो गयी है। घर में ,सड़क पर , काम पर , यार-दोस्तों के बीच ,हर कही सिर्फ क्रोध और उतावलापन ही हावी रहता है जो अंत में वीभत्स रूप में सामने आता है। जबकि इरोम का रास्ता अपना कर भी अपनी बात कही जा सकती है पर शायद इस के लिए भी तो धैर्य चाहिए जो आज की भगती दौड़ती दुनिया में निकालना मुश्किल है। इन रोजमर्रा की घटनाओं से जीवन के सबक लिए जा सकते हैं बशर्ते उसे समझें और स्वीकारने के लिए समय निकालें।
एक सफल जीवन के लिए जो भी आवश्यक नियम है वह हमें इसी जीवन की विभिन्न घटनाओं के ही इर्द-गिर्द मिलते है। उसे तलाश कर उन पर चलने के लिए दूसरों से प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि हम भी आगे किसी के लिए प्रेरणा बन सकें। कुछ अलग करोगे तभी दूसरों के लिए मिसाल कायम कर पाओगे ये याद रखना जरूरी है।
इरोम शर्मीला चानू……… ये सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक ऐतिहासिक संघर्ष का प्रतिरूप बन गया है। सशस्त्र बल अधिकार कानून के खिलाफ जिस शिद्दत से उन्होंने संघर्ष का बिगुल बजाया उसे आज मणिपुर इम्फाल की जनता सराह रही है। 14 वर्ष बाद खुली हवा में सांस लेने का मौका इरोम के लिए एक नायाब तोहफे की तरह है। परन्तु उनके संघर्ष को एक लम्बी लड़ाई के बाद ही सफलता मिलेगी ऐसा लगता है। 2 नवंबर 2002 से अनिश्चित कालीन अनशन पर बैठी इरोम को भारतीय दंड सहिंता की धारा 309 के तहत गिरफ्तार किया गया कि वह आत्महत्या करना चाहती है। जबकि वह तो शांतिपूर्ण ढंग से अपना प्रतिरोध दिखा कर इस कानून का विरोध कर रही थी जो एक सामान्य नागरिक को सामान्य जीवन जीने से रोक रहा था। अनशन के जरिये विरोध व्यक्त करने को कानून ने भी आत्महत्या की कोशिश मानने से इंकार किया। पर एक लम्बे समय से बिना अन्न ग्रहण किये उनकी स्थिति बिगड़ने पर नाक के जरिये जबरन आहार दे कर उनको बचाये रख सरकार ने उन्हें आत्महत्या का दोषी करार दिया। अब सवाल ये उठता है कि इरोम के प्रतिरोध को क्यों राजनितिक साजिश के तहत आत्महत्या बताया गया जबकि उन्होंने ऐसा कोई रास्ता नहीं अपनाया जो किसी अन्य को नुकसान पहुंचाता हों। नहीं तो आप खुद सोचे और समझे कि क्षेत्रवार संघर्षों के लिए अनेकों राज्यों में कई गुटों का जन्म हुआ और उन्होंने अपने स्वार्थसिद्धि के लिए खूब कत्लेआम और लूटपाट भी किये।
इरोम शांति का प्रतीक मानी जा सकती है कि किस तरह से उन्होंने अपनी बात का वज़न बढ़ने के लिए राह चुनी। आज की स्वार्थपरक दुनिया में एक सामाजिक मुद्दे के लिए स्वयं को तकलीफ देना काबिलेतारीफ है। आज हर कोई सिर्फ खुद के ही बारे में सोचता है खुद की तरक्की , खुद का जीवन ,खुद का अपार धन ,और खुद का स्वातंत्रय , ऐसे में इरोम के त्याग और किये की कदर की जानी चाहिए। इस सन्दर्भ से ये बात निकलती है की आम जीवन में भी हम क्या इरोम की तरह किसी मसले को शांतिपूर्ण ढंग से नहीं निपटा सकते ? हम और हमारा क्रोध आज समाज में इस तरह व्याप्त हो गया है कि आप कही भी देख लें प्यार और मिठास की भाषा गायब ही हो गयी है। घर में ,सड़क पर , काम पर , यार-दोस्तों के बीच ,हर कही सिर्फ क्रोध और उतावलापन ही हावी रहता है जो अंत में वीभत्स रूप में सामने आता है। जबकि इरोम का रास्ता अपना कर भी अपनी बात कही जा सकती है पर शायद इस के लिए भी तो धैर्य चाहिए जो आज की भगती दौड़ती दुनिया में निकालना मुश्किल है। इन रोजमर्रा की घटनाओं से जीवन के सबक लिए जा सकते हैं बशर्ते उसे समझें और स्वीकारने के लिए समय निकालें।
एक सफल जीवन के लिए जो भी आवश्यक नियम है वह हमें इसी जीवन की विभिन्न घटनाओं के ही इर्द-गिर्द मिलते है। उसे तलाश कर उन पर चलने के लिए दूसरों से प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि हम भी आगे किसी के लिए प्रेरणा बन सकें। कुछ अलग करोगे तभी दूसरों के लिए मिसाल कायम कर पाओगे ये याद रखना जरूरी है।
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