पिछली भूलों के सबक से निखरता कल……… !

क्या कभी आप ने सोचा है कि हमारी पिछली भूलों ने हमारे आने वाले कल का रूप कैसे बदल डाला ? जरूर सोचा होगा और शायद खुद को बदलने का प्रयास भी किया होगा। लेकिन जो सबसे जरूरी विचारणीय बात है वह ये कि आप ने ये भूल स्वीकार कब की ? कोई भी गलती तब भारी पड़ती है जब उसे आप समय रहते नहीं स्वीकारते या कई बार दोहरा कर भी नहीं समझ पाते। हम इंसान है और इंसान गलतियों से ही सीखता है। बचपन में पहली बार जब आप ने टूथ ब्रश उल्टा पकड़ा होगा तब माँ ने ही उसे सीधा पकड़ना सिखाया होगा और फिर आज तक उसे सीधा ही प्रयोग कर रहे हैं। कहने का तातपर्य  ये है कि एक बार समझा देने पर जब बहुत सी बातें जीवन भर के लिए याद हो जाती है तब वही सब बड़े हो कर हम क्यों भूल जाने के लिए मजबूर हो जाते है।  क्या दूसरों के साथ होने वाली घटनाएं या सामने होने वाला कोई भी हादसा एक सीख बनकर जीवन भर साथ नहीं रह सकता। ये भी तो जरूरी नहीं कि सारे प्रयोग खुद पर आजमा कर ही देखें जाएँ। 
       जीवन एक गेंद के सामान है ,कोई अच्छा कार्य आप को ऊपर उछालेगा और आप की गलती आप को नीचे गिराएगी। पर काबिलियत इसमें है कि आप नीचे गिरने के बाद पुनः कितना ऊपर उछलते है ? क्योंकि ये आप की इच्छाशक्ति और सामर्थ्य पर निर्भर करता है कि खुद के गलतिओं के कारण मिली असफलता को स्वीकार कर फिर से एक नए जोश और उत्साह के साथ उस गलती को दरकिनार कर आगे बढ़ रहें हैं। भूलों को समय पर स्वीकारना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है अपने कार्यों के परिणाम का आंकलन। जिस से भूल होने की गुंजाईश काफी कम हो जाती है। यदि ये कार्य मुश्किल लगे तो कम से कम इतना तो किया ही जा सकता है की पूर्व में इस तरह के कार्यों के परिणाम पर नजर डाल ली जाये। समयानुसार परिणामों में भी बदलाव आता है पर गलती का प्रभाव नहीं बदलता। उदाहरणार्थ एक समय था जब अंतरजातीय विवाहों को मान्यता नही थी और इसका विरोध लड़का लड़की को अलग कर के या विवाह को भंग कर के किया जाता था। इस के पीछे उनके अपने तर्क थे कि दूसरी जाति  में निभाना मुश्किल है या अपने से बड़ी या छोटी जाति  में समरूपता नहीं बैठाई जा सकती ,आदि आदि। उस समय इसे  एक भूल के रूप में स्वीकार किया जाता था । प्रभाव ये होता था कि दो परिवारों को लम्बे समय तक इस त्रासदी से गुजरना पड़ता था। अब आज के सदर्भ में देखें … आज तो आधुनिकता के दौर में दूसरी जाति में विवाह  का प्रचलन और बढ़ा ही है। परन्तु आज पहले जैसा विरोध नहीं रह गया। इस लिए विवाह तो हो रहे हैं पर प्रभाव देखें कि आज भी दो अलग अलग समाजों के लोगों के बीच सामंजस्य बैठने में मुश्किलात का सामना करना पड़ता है। जिसका परिणाम अधिक संख्या में हो रहे तलाक हैं। मेरे तर्क का ये तातपर्य नहीं की दूसरी जाति में विवाह गलत है पर परिणाम पहले से पता होता है फिर भी हम निभाने की नाकामयाब कोशिश के चलते सम्बन्ध विच्छेद के शिकार हो जाते हैं। इस पूरे  वाकये का सार ये है कि कोई भी कार्य गलती में तब बदल जाता है जब उसका परिणाम जानते हुए भी हम उसे करने की जिद ठान लेते हैं। समय से पहले अर्थात भूल से हानि उठाने से पहले सचेत हो जाना अपनी भूलों को सुधारने का एक बेहतर तरीका है पर ऐसा होता नहीं है। सब जानते हैं कि अंधाधुंध गाड़ी चलना जीवन को खतरे में डालना है फिर भी ये जानते समझते गलती करेंगे और दुर्घटना का शिकार बन जाते है। अब इसे क्या कहा जाए ? इस लिए जरूरत है कि अपनी पुरानी गलतियों से सबक लेकर उन्हें पीछे छोड़ दे और आगे भी दूसरों के साथ होने वाले हादसों को एक पाठ के रूप में याद रखें। जिस से जीवन सही और सुचारु चलने में मदद मिलेगी और परेशानिओं से बच कर एक खुशहाल जीवन जी पाएंगे।  

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