वीभत्स घटना का वीभत्स वर्णन.....तभी खून खौलेगा !
एक गंभीर विषय पर आज पुनः चर्चा करने जा रही हूँ क्योकि एक समाचारपत्र के जरिये ये पढ़ा तो अत्यंत दुःख हुआ , और ये महसूस किया की हमे बार बार जरूरत है इस विषय पर चर्चा की। ताकि कभी तो ये अहसास हो की हम जो भी देख और सुन रहें है वह गलत है और हमें ही इसे खत्म करने के लिए कदम आगे बढ़ाना है। ये ज्वलनशील मुद्दा है छोटी बच्चियों से बलात्कार का ……। अगस्त माह के आखरी हफ्ते में राजस्थान के बीकानेर में एक सेवानिवृत आर्मी फौजी ने एक अबोध बालिका को अपना शिकार बना उसकी वो दुर्दशा कर दी की आज वह जिंदगी और मौत से जूझती अस्पताल में पड़ी है। उस बच्ची की उम्र इतनी कम है कि उसे तो ममता की दृष्टि से देखा जाना चाहिए था। फिर कैसे उस वहशी को उस बच्ची से वह सुख मिलने की आस पैदा हो गयी जो एक पूर्ण स्त्री या पुरुष के संपर्क से मिल सकता है। छोटे बच्चे तो अपनी अबोध हरकतों से सबका मन मोह लेते है फिर उनके लिंग के आधार पर उनका शोषण , घोर अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। क्या ये सही नहीं की इस तरह के अपराधो के लिए कुछ ऐसा परिणाम निश्चित किया जाना चहिये जिससे व्यक्ति के मन में भय पैदा हो। एक सामान्य अपराधी की तरह रखा जाना और कोर्ट कचहरी के चक्करों में उलझाये रखने से उन्हें उनके अपराध की वीभत्सता नहीं दिखायी जा सकती। एक मासूम सा बच्चा खेलने कूदने की उम्र में हर समय इस दहशत में जिए की बाहर जाने पर कोई भी उसे नोच खायेगा ये उचित है क्या ? क्योंकि हर माँ सुरक्षा की दृष्टि से उसे वह हर एहतियात बरतने का हवाला देती रहती है जो उसकी नादान उम्र न तो समझ पाती है न ही जान पाती है।
जिस क्षणिक आवेश को शांत करने के लिए इस तरह के घृणित कार्य को अंजाम दिया जाता है जरूरत है उस पर रोक लगाने की। न की एक हँसते खेलते बच्चे को घर में कैद कर उसे बचाने की। आखिर कब तक हम यूँ ही अपने बच्चे बच्चियों को समाज के चंद घृणित सोच वाले व्यक्तिओं से बचाने में उनका पूरा बचपन ख़त्म कर देंगे। उन्हें बच्चा बन कर खेलते देखते हम भी उनके साथ अपना बचपन जी लेते है। एक बच्चा जो मासूमियत में ये भी न समझ पाता हो कि उस के साथ क्या गलत हो रहा हो उसे बर्बरता से कुचल देना इंसानियत नहीं है। अब वाकई जरूरत है की हम सभी किसी भी जरिये से जुड़े हों एक हो कर इस के खिलाफ आवाज उठाएं और एक ऐसे न्याय की उम्मीद करें जिस से इस तरह की घटनाओं पर कुछ रोक लग सकें। आज इंटरनेट के साथ एक ऐसी मुहीम की आवश्यकता है जो एक समय एक सशक्त आवाज बन कर कानून को बाध्य करें ऐसे घृणित सोच वाले लोगों को उनके असहनीय परिणाम के लिए। जब कानून ही गुनहगारों को मुँह पर कपड़ा बाँध कर ले जाने के पक्षधर रहता है तब वह समाज के बीच नंगे कैसे होंगे जबकि उस का चेहरा तो हर आम- खास को दिखाना चाहिए जिस से वह और उसकी परवरिश करने वाला परिवार कभी भी समाज में सम्मान से न जी सके। क्या कभी आप ने इस तरह की घटना को पढ़ने के बाद उस समय उस बच्ची के साथ गुजर रही स्थिति को महसूस किया है यदि नहीं तो एक बार अवश्य कर के देखें अपने आप खून खौलने लगेगा क्योंकि तभी आप ये महसूस कर पाएंगे की उस नादान ने ये दर्द कैसे झेला होगा। सरसरी तौर पर पढ़ कर आगे के पन्ने पलट लेने से इस समस्या का हल नहीं निकलने वाला। इसे होता महसूस करें और फिर इसके दुष्परिणाम को समझें तभी कुछ बदलेगा। चलिए आज से ही एक अच्छे और नेक काज की शुरुआत करें की इस तरह की घटना को पढ़ने या सुनने के बाद उसे उसकी गोपनीयता बनाये हुए उसी वीभत्स रूप में social networking sites पर डाल कर उसकी भयावहता का अंदाजा लगने दे। क्योंकि ये अपने साथ नहीं हो रहा ये सोच कर अनदेखा कर लेना तभी ध्यान खीचना प्रारम्भ करेगा। और जब अनेकों ध्यान इस ओर आएंगे तभी कुछ नया, कुछ सार्थक होने की आस बाँधी जा सकती है।
एक गंभीर विषय पर आज पुनः चर्चा करने जा रही हूँ क्योकि एक समाचारपत्र के जरिये ये पढ़ा तो अत्यंत दुःख हुआ , और ये महसूस किया की हमे बार बार जरूरत है इस विषय पर चर्चा की। ताकि कभी तो ये अहसास हो की हम जो भी देख और सुन रहें है वह गलत है और हमें ही इसे खत्म करने के लिए कदम आगे बढ़ाना है। ये ज्वलनशील मुद्दा है छोटी बच्चियों से बलात्कार का ……। अगस्त माह के आखरी हफ्ते में राजस्थान के बीकानेर में एक सेवानिवृत आर्मी फौजी ने एक अबोध बालिका को अपना शिकार बना उसकी वो दुर्दशा कर दी की आज वह जिंदगी और मौत से जूझती अस्पताल में पड़ी है। उस बच्ची की उम्र इतनी कम है कि उसे तो ममता की दृष्टि से देखा जाना चाहिए था। फिर कैसे उस वहशी को उस बच्ची से वह सुख मिलने की आस पैदा हो गयी जो एक पूर्ण स्त्री या पुरुष के संपर्क से मिल सकता है। छोटे बच्चे तो अपनी अबोध हरकतों से सबका मन मोह लेते है फिर उनके लिंग के आधार पर उनका शोषण , घोर अपराध की श्रेणी में आना चाहिए। क्या ये सही नहीं की इस तरह के अपराधो के लिए कुछ ऐसा परिणाम निश्चित किया जाना चहिये जिससे व्यक्ति के मन में भय पैदा हो। एक सामान्य अपराधी की तरह रखा जाना और कोर्ट कचहरी के चक्करों में उलझाये रखने से उन्हें उनके अपराध की वीभत्सता नहीं दिखायी जा सकती। एक मासूम सा बच्चा खेलने कूदने की उम्र में हर समय इस दहशत में जिए की बाहर जाने पर कोई भी उसे नोच खायेगा ये उचित है क्या ? क्योंकि हर माँ सुरक्षा की दृष्टि से उसे वह हर एहतियात बरतने का हवाला देती रहती है जो उसकी नादान उम्र न तो समझ पाती है न ही जान पाती है।
जिस क्षणिक आवेश को शांत करने के लिए इस तरह के घृणित कार्य को अंजाम दिया जाता है जरूरत है उस पर रोक लगाने की। न की एक हँसते खेलते बच्चे को घर में कैद कर उसे बचाने की। आखिर कब तक हम यूँ ही अपने बच्चे बच्चियों को समाज के चंद घृणित सोच वाले व्यक्तिओं से बचाने में उनका पूरा बचपन ख़त्म कर देंगे। उन्हें बच्चा बन कर खेलते देखते हम भी उनके साथ अपना बचपन जी लेते है। एक बच्चा जो मासूमियत में ये भी न समझ पाता हो कि उस के साथ क्या गलत हो रहा हो उसे बर्बरता से कुचल देना इंसानियत नहीं है। अब वाकई जरूरत है की हम सभी किसी भी जरिये से जुड़े हों एक हो कर इस के खिलाफ आवाज उठाएं और एक ऐसे न्याय की उम्मीद करें जिस से इस तरह की घटनाओं पर कुछ रोक लग सकें। आज इंटरनेट के साथ एक ऐसी मुहीम की आवश्यकता है जो एक समय एक सशक्त आवाज बन कर कानून को बाध्य करें ऐसे घृणित सोच वाले लोगों को उनके असहनीय परिणाम के लिए। जब कानून ही गुनहगारों को मुँह पर कपड़ा बाँध कर ले जाने के पक्षधर रहता है तब वह समाज के बीच नंगे कैसे होंगे जबकि उस का चेहरा तो हर आम- खास को दिखाना चाहिए जिस से वह और उसकी परवरिश करने वाला परिवार कभी भी समाज में सम्मान से न जी सके। क्या कभी आप ने इस तरह की घटना को पढ़ने के बाद उस समय उस बच्ची के साथ गुजर रही स्थिति को महसूस किया है यदि नहीं तो एक बार अवश्य कर के देखें अपने आप खून खौलने लगेगा क्योंकि तभी आप ये महसूस कर पाएंगे की उस नादान ने ये दर्द कैसे झेला होगा। सरसरी तौर पर पढ़ कर आगे के पन्ने पलट लेने से इस समस्या का हल नहीं निकलने वाला। इसे होता महसूस करें और फिर इसके दुष्परिणाम को समझें तभी कुछ बदलेगा। चलिए आज से ही एक अच्छे और नेक काज की शुरुआत करें की इस तरह की घटना को पढ़ने या सुनने के बाद उसे उसकी गोपनीयता बनाये हुए उसी वीभत्स रूप में social networking sites पर डाल कर उसकी भयावहता का अंदाजा लगने दे। क्योंकि ये अपने साथ नहीं हो रहा ये सोच कर अनदेखा कर लेना तभी ध्यान खीचना प्रारम्भ करेगा। और जब अनेकों ध्यान इस ओर आएंगे तभी कुछ नया, कुछ सार्थक होने की आस बाँधी जा सकती है।
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