उपवास अर्थात स्वयं के पास…………!
आप ईश्वर को मानते हैं , उसके अस्तित्व पर विश्वास करते है और उसके लिए नियमित पूजा पाठ भी करते हैं। इसी पूजा पाठ का एक और रूप है उपवास यानि व्रत। उपवास रखना सेहत के लिए अच्छा है पर उसे व्यक्ति बाध्य हो कर करे इस लिए उसे धर्म से जोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है। ताकि अनिष्ट की आशंका से बचा रहने के लिए व्यक्ति प्रभु के नाम का उपवास कर उसे खुश रखे। अब विस्तार से जाने कि ये उपवास है क्या.......... उपवास दो शब्दों से मिल कर बना है उप +वास । अर्थात बिलकुल पास ,किसके ? स्वयं के पास। स्वयं के पास अर्थात सभी दूसरी वस्तुओं या गतिविधियों से दूर। जिस दिन आप कुछ नहीं खाते उस दिन पहले की एकत्र ऊर्जा खाना पचाने के बजाये एक नयी दिशा की ओर मुड़ जाती है वह है ध्यान ,ये ध्यान या तो ईश्वर से जुड़ा हो सकता है या खुद से। जब कोई गहराई से भीतर अपने पास या साथ होता है तो वह शरीर को भूल जाता है।अतः आप इधर उधर से ध्यान हटा कर स्वयं पर केंद्रित करेंगे तभी आप ईश्वर की भी महत्ता को समझ पाएंगे , इसे आप शुन्य काल भी कह सकते हैं । जिस में व्यक्ति समस्त संसार से विमुख होकर स्वयं को ईश्वर और सृष्टि में रमाँता है। इसे एक अन्य तरीके से भी समझें ,जब आप अत्यंत खुश रहते हैं किसी उपलब्धि पर आनंदित होते हैं या कोई घर पर अपना आ जाता है तो आप खाना पीना भूल कर उसी के साथ में रम जाते हैं। ये सोच कर आनंदित होते हैं कि आज तो आनंद से ही पेट भर गया।आनंद अंदर के खालीपन को पूरी तरह भर देता हैं। ख़ुशी भूख प्यास दोनों खत्म कर देती है। यही उपवास है। सही मायनों में उपवास का अर्थ है कि इतने आनंद में रहो की भूख प्यास का पता ही ना चले। अपने अंदर की आत्मिक ताकत को मजबूत बनाने का एक उत्तम साधन है उपवास।
कभी आप ने महसूस किया है कि जिस दिन आप ज्यादा दुखी होते है या चिंता में होते हैं तो आप ज्यादा भी खा लेते हैं। क्योंकि व्यक्ति अपने अंदर के खालीपन को खाने से भरना चाहता है। ये एक शाश्वत सत्य है कि दुखी व्यक्ति ज्यादा खाना खाता है। क्योंकि वह अंदर से खाली महसूस कर रहा होता है। और उसे भरने के लिए उसे भोजन ही बेहतर नजर आता है। उपवास में खाना पीना दोनों ही वर्जित है। ये शरीर के लिए भी लाभकारी है। क्योंकि रोज काम करने वाली पाचन प्रणाली को उस दिन आराम भी मिलता है और खुद को दुरुस्त रखने का समय भी । उपवास ख़त्म होने के बाद ज्यादा खा लेना ये दर्शाता है कि दिन भर का उपवास आप को अपने शरीर की माया से अलग नहीं रख पाया। शरीर की भूख प्यास से विचलित होते मन से रखा उपवास न तो शरीर और न ही ध्यान के लिए अच्छा होता है । इस लिए उपवास रखने से पहले खुद से पूछ कर प्रण करें , कि ये उपवास मेरे आत्मिक संतुष्टि और शुद्धि के लिए है। और इसे मैं पूरे मन से रख कर निर्वाह करूँगा। उपवास भले ही धर्म से जुड़ा हो पर उसके फायदे व्यवहारिक हैं। और इन्ही फायदों का लालच उपवास रखने की प्रेरणा बन जाता है। आज का समय जिसे कलयुग कहते हैं उसमे तो उपवास की महत्ता और बढ़ जाती है क्योंकि आज ईश्वर को खुश रखने के साथ साथ अपने शरीर की ओर भी ध्यान देना जरूरी है। रोजमर्रा के बिगड़ते खानपान ने जीवन को जिस तरह प्रभावित किया है वह उपवास से ही सुधर सकता है। आखिर शरीर भी तो एक मशीन ही है और दूसरी मशीनों की तरह इसे भी आराम की आवश्यकता होती है। इसलिए यदि एक तीर से दो नहीं चार शिकार होते हैं तो इसे फायदे का ही सौदा माना जाना चाहिए। पहला ये कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा का प्रमाण सिद्ध होता है। दूसरा आत्मिक संतुष्टि से स्वयं के करीब जाने को मिलता है। तीसरा शरीर को एक दिन अपनी दैनिक क्रियाओं से फुरसत मिलती है और वह खुद को दुरुस्त बनाने का कार्य कर पाता है। और चौथा ये कि सभी का एक दिन का उपवास इतने अन्न की बचत कर सकता है जिस से कई गरीबों का पेट भरा जा सकता है। अतः उपवास को भी अब एक दैनिक मगर आवश्यक क्रिया समझ कर किया जाना चाहिए। जिस से जीवन की कई मुश्किलों को हल किया जा सकता है। उपवास ईश्वर के नाम पर रख कर आप उसे जितना खुश करते हैं उस से कही ज्यादा ये ख़ुशी आप को स्वयं के लिए मिलती है। वह भी जीवन के विभिन्न रूपों के जरिये। इस लिए उपवास की परंपरा को बना कर उसका पालन करें प्रयास निष्फल नहीं होगा।
आप ईश्वर को मानते हैं , उसके अस्तित्व पर विश्वास करते है और उसके लिए नियमित पूजा पाठ भी करते हैं। इसी पूजा पाठ का एक और रूप है उपवास यानि व्रत। उपवास रखना सेहत के लिए अच्छा है पर उसे व्यक्ति बाध्य हो कर करे इस लिए उसे धर्म से जोड़ कर प्रस्तुत किया जाता है। ताकि अनिष्ट की आशंका से बचा रहने के लिए व्यक्ति प्रभु के नाम का उपवास कर उसे खुश रखे। अब विस्तार से जाने कि ये उपवास है क्या.......... उपवास दो शब्दों से मिल कर बना है उप +वास । अर्थात बिलकुल पास ,किसके ? स्वयं के पास। स्वयं के पास अर्थात सभी दूसरी वस्तुओं या गतिविधियों से दूर। जिस दिन आप कुछ नहीं खाते उस दिन पहले की एकत्र ऊर्जा खाना पचाने के बजाये एक नयी दिशा की ओर मुड़ जाती है वह है ध्यान ,ये ध्यान या तो ईश्वर से जुड़ा हो सकता है या खुद से। जब कोई गहराई से भीतर अपने पास या साथ होता है तो वह शरीर को भूल जाता है।अतः आप इधर उधर से ध्यान हटा कर स्वयं पर केंद्रित करेंगे तभी आप ईश्वर की भी महत्ता को समझ पाएंगे , इसे आप शुन्य काल भी कह सकते हैं । जिस में व्यक्ति समस्त संसार से विमुख होकर स्वयं को ईश्वर और सृष्टि में रमाँता है। इसे एक अन्य तरीके से भी समझें ,जब आप अत्यंत खुश रहते हैं किसी उपलब्धि पर आनंदित होते हैं या कोई घर पर अपना आ जाता है तो आप खाना पीना भूल कर उसी के साथ में रम जाते हैं। ये सोच कर आनंदित होते हैं कि आज तो आनंद से ही पेट भर गया।आनंद अंदर के खालीपन को पूरी तरह भर देता हैं। ख़ुशी भूख प्यास दोनों खत्म कर देती है। यही उपवास है। सही मायनों में उपवास का अर्थ है कि इतने आनंद में रहो की भूख प्यास का पता ही ना चले। अपने अंदर की आत्मिक ताकत को मजबूत बनाने का एक उत्तम साधन है उपवास।
कभी आप ने महसूस किया है कि जिस दिन आप ज्यादा दुखी होते है या चिंता में होते हैं तो आप ज्यादा भी खा लेते हैं। क्योंकि व्यक्ति अपने अंदर के खालीपन को खाने से भरना चाहता है। ये एक शाश्वत सत्य है कि दुखी व्यक्ति ज्यादा खाना खाता है। क्योंकि वह अंदर से खाली महसूस कर रहा होता है। और उसे भरने के लिए उसे भोजन ही बेहतर नजर आता है। उपवास में खाना पीना दोनों ही वर्जित है। ये शरीर के लिए भी लाभकारी है। क्योंकि रोज काम करने वाली पाचन प्रणाली को उस दिन आराम भी मिलता है और खुद को दुरुस्त रखने का समय भी । उपवास ख़त्म होने के बाद ज्यादा खा लेना ये दर्शाता है कि दिन भर का उपवास आप को अपने शरीर की माया से अलग नहीं रख पाया। शरीर की भूख प्यास से विचलित होते मन से रखा उपवास न तो शरीर और न ही ध्यान के लिए अच्छा होता है । इस लिए उपवास रखने से पहले खुद से पूछ कर प्रण करें , कि ये उपवास मेरे आत्मिक संतुष्टि और शुद्धि के लिए है। और इसे मैं पूरे मन से रख कर निर्वाह करूँगा। उपवास भले ही धर्म से जुड़ा हो पर उसके फायदे व्यवहारिक हैं। और इन्ही फायदों का लालच उपवास रखने की प्रेरणा बन जाता है। आज का समय जिसे कलयुग कहते हैं उसमे तो उपवास की महत्ता और बढ़ जाती है क्योंकि आज ईश्वर को खुश रखने के साथ साथ अपने शरीर की ओर भी ध्यान देना जरूरी है। रोजमर्रा के बिगड़ते खानपान ने जीवन को जिस तरह प्रभावित किया है वह उपवास से ही सुधर सकता है। आखिर शरीर भी तो एक मशीन ही है और दूसरी मशीनों की तरह इसे भी आराम की आवश्यकता होती है। इसलिए यदि एक तीर से दो नहीं चार शिकार होते हैं तो इसे फायदे का ही सौदा माना जाना चाहिए। पहला ये कि ईश्वर के प्रति श्रद्धा का प्रमाण सिद्ध होता है। दूसरा आत्मिक संतुष्टि से स्वयं के करीब जाने को मिलता है। तीसरा शरीर को एक दिन अपनी दैनिक क्रियाओं से फुरसत मिलती है और वह खुद को दुरुस्त बनाने का कार्य कर पाता है। और चौथा ये कि सभी का एक दिन का उपवास इतने अन्न की बचत कर सकता है जिस से कई गरीबों का पेट भरा जा सकता है। अतः उपवास को भी अब एक दैनिक मगर आवश्यक क्रिया समझ कर किया जाना चाहिए। जिस से जीवन की कई मुश्किलों को हल किया जा सकता है। उपवास ईश्वर के नाम पर रख कर आप उसे जितना खुश करते हैं उस से कही ज्यादा ये ख़ुशी आप को स्वयं के लिए मिलती है। वह भी जीवन के विभिन्न रूपों के जरिये। इस लिए उपवास की परंपरा को बना कर उसका पालन करें प्रयास निष्फल नहीं होगा।
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