जुबान और शरीर की विपरीत माँगें................ !

क्या कभी आप ने इस बारे में सोचा है कि जीवन में हर चीज का एक कोटा निर्धारित होता है ? ईश्वर ने हमें जो साँसे बक्शी है वह भी निर्धारित हैं जीवन के हर पल पहले से तय है। उस कोटे को जीवन भर प्रयोग करना या कुछ समय में ही खत्म कर देना ,ये हमारे ऊपर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए किसी खाने पीने की वस्तु को ही लीजिये ,जैसे नमक चीनी आदि। ईश्वर ने हमारे पूरे जीवन काल के इन जैसी अनेकों वस्तुओं की एक निर्धारित मात्रा तय की है।  और हम उसका उपयोग करते हैं।  ये हम पर निर्भर करता है कि उसे  हम जीवन के कुछ सालों में खत्म कर के बाकी ज़िन्दगी उसके बिना जियें या थोड़ा थोड़ा करके पूरे जीवन काल मे उसका मजा उठाएं। अपने भोजन में ज्यादा नमक,चीनी या घी तेल का सेवन एक वक्त बाद हमारी ही जीवन शैली के कारण  बंद कर दिया जाता है।  और फिर बाकि का जीवन हम उसके लिए तरसते हुए गुजारते हैं। इस का मूल कारण  है पहले से नहीं चेतना। ये पहले ही सोच और समझ लेना चाहिए की आज के  खानपान और जीवनशैली में बहुत बदलाव आ चुका है और अब हमें उन आदतों को त्यागना पड़ेगा जो की हमारे स्वास्थय के लिए हानिकारक सिद्ध हो रही हैं। पहले के ज़माने में लोग शुद्ध और सात्विक भोजन के साथ  शारीरिक मेहनत भी करते थे जिस से खाया पिया हजम होने से शरीर स्वस्थ रहता था। अब लोगो का आधे से ज्यादा समय कंप्यूटर के आगे बैठे बैठे निकलता है ऐसे  में मेहनत की बात कहाँ आती है। आज कम उम्र में ही लोगो को वह रोग लग रहें है जो की एक समय बड़े बूढ़ों के रोग कहे जाते थे। जैसे  दिल की तकलीफ ,शुगर की तकलीफ , जोड़ो के दर्द ,या रक्तचाप अर्थात बी. पी की समस्या आदि। आज छोटे छोटे बच्चों में भी ये रोग देखने को मिल जायेंगे। इस का मूल कारण गर्भावस्था में माँ का खानपान और फिर बच्चे के जन्म के बाद उसका खानपान हैं। आज हमें मैगी बनाना ज्यादा सुविधाजनक लगता है बजाये की रोटियां। और ये ही बच्चो को आदी बना रहा है फ़ास्ट फ़ूड का।हमारे खानपान ने जीवन की जो दुर्दशा की है उसका पता युवावस्था  में नहीं लगता पर 40 -45 की उम्र पार होते ही उसके लक्षण दिखने प्रारम्भ हो जाते हैं। और इस कारण आप जीवन की बहुत सी चीजों से हमेशा के लिए महरूम ही जाते हैं। योग विज्ञानं बहुत कुछ कहता है और उसका पालन करना जीवन को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है।  पर क्या हम उसके लिए भी समय निकल पाते है ? मेरी नानी कहती हैं कि सब जबान का खेल है कोई भी स्वादिष्ट वस्तु  जुबान  पर कुछ पल के लिए ही रहती है और फिर उसे पेट में जाकर कीचड़ ही बनना है। और इसी कुछ पल के स्वाद का मजा लेने के लिए हम अपने पूरे जीवन को खतरे में डाल देते हैं। इसी से जुडी दूसरी बात ये है कि किसी वस्तु का सेवन एक बार किया जाए या चार बार स्वाद तो वही आएगा तब क्यों न जो वस्तु स्वास्थ्य  के लिए बहुत अच्छी न हो उसे एक ही खा कर या सिर्फ चख कर संतुष्ट होने का प्रयास किया जाए। इस से उसका स्वाद भी मिल जायेगा और हानि भी कम होगी।  पर क्या हम ने कभी ऐसे सोचा है ? हम सिर्फ जुबान के लिए जीते रहने का खमियाजा अपने गिरते स्वास्थय से चुका रहें हैं।  ठहरिये और सोचिये की जीवन ज्यादा अनमोल है या आपके जुबान  का स्वाद।  आज बाजार में लाखों तरह के खाने पीने की वस्तुएं मौजूद हैं। और ये वस्तुएं सिर्फ आकर्षण के सिवा कुछ भी नहीं हैं क्योंकि जो कुछ आप घर में पका कर खाते  है वही असली स्वाद है जो असल में शरीर को भाता है। जुबान और शरीर में असली फर्क ये ही है कि जुबान वही पसंद करती है जो उसे ऐंठने पर मजबूर कर दे अर्थात चटपटा, तीखा और मीठा जबकि शरीर वह मांगता हैं जो उसके कार्यकाल को बढ़ा सके।  अब ऐसे में ये आप का दायित्व है की आप किसे संतुष्ट करते हैं। ये दायित्व पूरा करने का चुनाव ही जीवन के लिए संजीवनी बूटी सा काम करता है। जुबान को खुश करने के बजाये यदि आप जुबान से खुश करने के तरीके अमल में लाएंगे तो जीवन को और बेहतर बना  पाएंगे। क्योकि आप की जुबान खुश न करने पर भी आप का साथ नहीं छोड़ेगी ,परन्तु यदि इसने दूसरों को नाखुश कर दिया तो वह जरूर आप का साथ छोड़ देंगे। इस  लिए समय रहते होश में आएं और जुबान को काबू में रखकर स्वास्थ्य और रिश्ते दोनों को बचाएँ।  जिस तरह आप को बेहतर की दरकार होती है उसी तरह शरीर के अंग भी आप से कुछ बेहतर मांगते है जिसे आप अनदेखा कर उनके साथ नहीं बल्कि अपने साथ अन्याय करते हैं।  ये आप समझ तो जाते हैं , पर बहुत देर बाद जब शरीर ही साथ छोड़ने लगता है ……… अतः अब पछताए क्या होत  ,जब चिड़िया चुग गई खेत। से पहले सचेत होकर शरीर को प्राथमिकता दे न की जुबान को।                 

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