औरत के हाथ तेजाब का हथियार .............!

आज पुनः एक ज्वलंत समस्या की और ध्यान खीचने का प्रयास करुँगी। जिसमे आप की राय  भी जरूरी है की ऐसा ही होना चाहिए तभी कुछ बदल पायेगा। ये समस्या है युवतीओं या लड़किओं पर तेजाब फेंकने की.............लगभग रोज ही समाचार पत्रों में ये समाचार प्रकाशित होता है। अभी हाल ही में दो स्थानों पर तेजाब द्वारा युवती को घायल कर दिया गया। और कारण  वही एक तरफ़ा प्रेम। औरत को कमजोर समझ कर इस तरह के हमले हमेशा से होते रहे है और औरत चुपचाप सह कर रह जाती है। पर अब वक्त है कि इसे बदले और अब तेजाब पुरुष के हाथ में नहीं बल्कि औरत के हाथ में होना चाहिए। ताकि वह पुरुष का डट कर मुकाबला कर सके और हर प्रताड़ना का जवाब उसी की भाषा में उसे दे सके। 
                         ये आवश्यक है की अब सरकार को यही नियम लागू कर देना चाहिए की तेजाब या एसिड जैसी वस्तु सिर्फ औरत को ही बेचीं जाएगी। ताकि वह पुरुष समाज के घिनौने मंसूबों को जला कर ख़त्म कर सके।  कम से कम अकेले में बलात्कार या छेड़छाड़ जैसी घटनाएं तो रुकेंगी क्योंकि तब पुरुष डरेगा कि कही उसके ऊपर तेजाब ही न पड़  जाए।  स्थिति को महसूस करें कि यदि ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा होगा की पुरुष औरत से बच बच कर चले। जिस तरह अपने बैग में खाने का डिब्बा, पानी की बोतल रखी जाती है उसी तरह एक ये भी चीज मौजूद होने चाहिए। जब हर ओर पुरुष के रूप भेड़िये घूम रहें हो तब कोई न कोई तो हथियार रखना ही पड़ेगा मुकाबले के लिए। और इस से बेहतर कोई हथियार नहीं दीखता। कुछ समय पहले पेपर स्प्रे नाम का एक अस्त्र अपने बैग में रखने की सलाह दी जाती थी पर वो भी उतना कारगर सिद्ध नहीं हो पाया। चाकू छुरी महिलाये चला नहीं सकती। हर महिला जुडो कराटे सीख नहीं सकती तब कोई तो रास्ता सोचना ही पड़ेगा जो आसानी से और बिना डर  के औरत आजमा सके। और मेरी नजर में ये एक बेहतर तरीका है उन्ही के  हथियार से उन्ही पर वार। आखिर कब तक हम इस डर से बाहर नहीं निकालेंगे की हमें कोई नोच खायेगा।  हमें भी तो उस आजादी को महसूस करना चाहिए जो पुरुष जी रहा है। 
                 तेजाब की जरूरत इस लिए नहीं है कि पुरुष को जलाया जाये बल्कि इस लिए की दो चार ऐसे घटनाओं के ही बाद ही उनका डर सचेत हो जाएगा। करीब आते और कुछ गलत करने का सोचते समय पहले उसे ये सोचना पड़ेगा की कहीं महिला अपना हथियार तो ले कर नहीं चल रही। जब भीड़ भरे इलाके में उन्हें कुछ करने से हिचक नहीं होती तब महिला क्यों नहीं उसका जवाब दे सकती है। बड़ी होती बच्चिओं के हाथ कोई ऐसे ही हथियार की जरूरत है। सुरक्षा के लिए कुछ आजमाना कैसे गलत हो सकता है। और कानून ये कैसे उम्मीद कर सकता है की एक महिला किसी दूसरे को बिना कोई हानि पहुंचाए अपनी सुरक्षा कर पायेगी। जहाँ दो चार पुरुष इकट्ठे हो कर जोर आजमाइश करने लगे वहां एक अकेली औरत क्या करेगी ये सोचे और फिर इस तरीके के बारे में सोचें। जब वो ऐसी वस्तु के प्रयोग से जिंदगी ख़त्म तक कर सकते है तब उनके प्रति ये रियायत क्यों ? वैसे कानून भी तो अपने रक्षा हेतु उठाये हथियार को गलत नहीं मानता। अतः अब कानून और सरकार के नजरिये में भी बदलाव आना चाहिए और कुछ ऐसे ही कड़े कदम को उठा कर पुरुष को डरने पर मजबूर करना चाहिए। जब वह अपनी सोच नहीं बदल पा रहे तब उस सोच के साथ उनके अस्तित्व को भी घायल करने का हक़ औरत के पास होना चाहिए। आखिर कब तक पुरुष की गन्दी सोच और दुर्भावना का दंश औरत भोगेगी। अब जाग कर मजबूत बनने  का समय है और उन्हें डरा कर रखने का कि बच कर चलो वरना  कही हाथ में तेजाब हुआ तो बेकार ही जल जाओगे .......!  

Comments