छात्र संघ चुनाव……विश्वविद्यालयों का गटर !
आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण और तात्कालिक विषय पर चर्चा कर के उसके फायदे नुकसान पर नजर डालते हैं। जिसका पालन युवाओं को करना तो चाहिये पर सामाजिक परिस्थितियों और भविष्य के लिए अंधी दौड़ में वह अच्छा बुरा सब भूल जाते हैं। इस के लिए कुछ हद तक आज कल की राजनैतिक परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। नेताओं को अपने फायदे के लिए पढ़ रहें छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने में भी हिचक नहीं होती। यह समस्या है कॉलेजों या यूनिवर्सिटी में चुनाव की .......... आज देखें कि 12 वीं के बाद जैसे ही युवा कॉलेज में दाखिला लेता है उसके सामने अपने बढे हुए पढाई के कोर्स को पूरा करने का समय बशर्ते न हो पर छात्र संघ के चुनावों के लिए समय निकल जाता हैं। कॉलेज सत्र के लगभग 6 से 8 माह इसी चुनाव की भेंट चढ़ जाते हैं। जिस में किसी भी तरह की कोई पढाई नहीं होती। छात्र अपने चुनाव प्रचार की तैयारी में और पढाने वाले अध्यापक उन्हें प्रोत्साहित करने में सारा समय गवां देते हैं। आखिर क्या जरूरत है पढ़ते हुए इस तरह की गतिविधियों में भाग लेने की ? जीवन के जो सबसे महत्वपूर्ण वर्ष होते हैं वह यही पढाई के दिन होते हैं जिन पर आगे का सारा भविष्य टिका होता है। आप के performance और उससे जुडी उपलब्धियों के आधार पर भविष्य का आंकलन किया जा सकता है। पर इस समस्या ने सिर्फ हमारे देश में ही नहीं विश्व की कई अग्रणी संस्थानों को प्रभावित कर रखा है। एक बार सब सोचें कि आखिर इसे लागू रखने का औचित्य क्या है ?
ये समय लग कर पढाई करने का और आगे के भविष्य की योजनाएं बनाने का है। कॉलेज में एक ऐसा माहौल मिलना चाहिए जिस से युवा अपने आगे के रास्ते के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकें। क्योंकि यही वह 4 या 5 साल होते हैं जिन के सहारे कोई भी युवा किसी अच्छी जगह खुद को स्थापित कर सकता हैं। अपनी अच्छी पढाई ,अच्छे मार्गदर्शकों का साथ ,और एक प्रोत्साहित करने वाला वातावरण उसे ऊचाइयों पर ले जाने में मददगार सिद्ध होता हैं। जिस के लिए हमें पहले अपने आस पास का माहौल सुधारना होगा। सही , अच्छे माहौल और भली संगत का असर तुरंत दिखेगा। युवा के मन को सयंत रखने के लिए जरूरी है कि कॉलेज में विद्यार्थी और अध्यापक के बीच एक समुचित तालमेल का निर्माण किया जाए।
अब ये सोचे कि इस चुनाव की प्रक्रिया से क्या किसी को कोई लाभ मिलता है ? नहीं ! ये सब बड़े नेताओं के चोंचलेँ है। उन्हें अपने चुनावों के समय कार्यकर्ताओं के जिस फ़ौज की जरूरत पड़ती है उस को वह इन्ही कॉलेज छात्रों के जरिये पूरा करते हैं वरना ये सोचें कि इतने वर्ष इन चुनावों में ख़राब करने के बाद कितने छात्र उच्च स्तर की राजनीती में शामिल हो पातें है। और यदि शामिल हो भी गए तो क्या आज राजनीती का स्तर अच्छा रह पाया है कि उस में घुस कर गर्व महसूस किया जा सके। आप खुद अंतर महसूस करें कि किसी का पुत्र या पुत्री सिविल सेवा परीक्षा में अव्वल आया हो और दूसरी तरफ किसी एक ने नेता बनने की ओर कदम बढ़ाया हो तो आप किस में ज्यादा प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। यकीनन सिविल सेवा के लिए………क्योंकि ये पूरे जीवन का सौदा होता हैं। कॉलेजों के इन चुनावों ने पढाई के प्रति छात्र की रूचि को लगभग ख़त्म सा कर दिया है अब तो छात्राएं भी इस मैदान में कूदने लगी हैं। प्रचार के दिनों के हाल देखें की पूरा शहर ही बेवजह के पोस्टरों और पैम्प्लेट्स से भरा रहता है। कितना खर्च आता है वह एक अलग मुद्दा है। क्योंकि रईस छात्र छात्राओं के लिए धन खर्च करना अपनी प्रसिद्धि की कीमत पर नगण्य दिखता है।
इन सब में सब से ज्यादा अगर किसी का नुकसान होता है तो वह है सही मायनो में पढ़ने वाले चंद छात्र छात्राओं का। पढाई का माहौल प्रभावित होने से इस नुकसान का खामियाजा वह अपने भविष्य को दांव पर लगा कर चुकाते हैं कुछ ऐसे भी छात्र छात्राएं होते है जो गावों से किसी निर्धन परिवार के हो कर भी बड़े सपने की आस में अच्छे से अच्छे कॉलेज में दाखिला लेते है। और पढ़ कर आगे बढ़ने के लिए दिल से प्रयास करने का माद्दा भी रखते हैं। उनका भविष्य दावं पर लगाने का कार्य ये छात्र संघ चुनाव बखूबी करते हैं। ये प्रक्रिया अब बंद होनी चाहिए और कॉलेज और यूनिवर्सिटी में सिर्फ पढाई और प्रशिक्षण कक्षाएं चलनी चाहिए जिस से विद्यार्थी को कुछ और सोचने का समय ही न मिले। और वह अपने भविष्य के प्रति केंद्रित रहें। समय गुजरने के बाद लाख पछता लो कुछ नहीं किया जा सकता अतः जो समय अपने भविष्य की योजनाएं बनाने का है उसे इस तरह की गतिविधियों में नष्ट न करें। वरना पूरे जीवन बिना किसी एक मुश्त (permanent ) कार्य के निकालना भारी पड़ने लगेगा। क्योंकि ये जीवन है और इस जीवन से जुड़े अनेकों खर्चों के लिए एक अच्छे काम की व्यवस्था आवश्यक है। ये एक शाश्वत सत्य है इसे स्वीकार करें।
आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण और तात्कालिक विषय पर चर्चा कर के उसके फायदे नुकसान पर नजर डालते हैं। जिसका पालन युवाओं को करना तो चाहिये पर सामाजिक परिस्थितियों और भविष्य के लिए अंधी दौड़ में वह अच्छा बुरा सब भूल जाते हैं। इस के लिए कुछ हद तक आज कल की राजनैतिक परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। नेताओं को अपने फायदे के लिए पढ़ रहें छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करने में भी हिचक नहीं होती। यह समस्या है कॉलेजों या यूनिवर्सिटी में चुनाव की .......... आज देखें कि 12 वीं के बाद जैसे ही युवा कॉलेज में दाखिला लेता है उसके सामने अपने बढे हुए पढाई के कोर्स को पूरा करने का समय बशर्ते न हो पर छात्र संघ के चुनावों के लिए समय निकल जाता हैं। कॉलेज सत्र के लगभग 6 से 8 माह इसी चुनाव की भेंट चढ़ जाते हैं। जिस में किसी भी तरह की कोई पढाई नहीं होती। छात्र अपने चुनाव प्रचार की तैयारी में और पढाने वाले अध्यापक उन्हें प्रोत्साहित करने में सारा समय गवां देते हैं। आखिर क्या जरूरत है पढ़ते हुए इस तरह की गतिविधियों में भाग लेने की ? जीवन के जो सबसे महत्वपूर्ण वर्ष होते हैं वह यही पढाई के दिन होते हैं जिन पर आगे का सारा भविष्य टिका होता है। आप के performance और उससे जुडी उपलब्धियों के आधार पर भविष्य का आंकलन किया जा सकता है। पर इस समस्या ने सिर्फ हमारे देश में ही नहीं विश्व की कई अग्रणी संस्थानों को प्रभावित कर रखा है। एक बार सब सोचें कि आखिर इसे लागू रखने का औचित्य क्या है ?
ये समय लग कर पढाई करने का और आगे के भविष्य की योजनाएं बनाने का है। कॉलेज में एक ऐसा माहौल मिलना चाहिए जिस से युवा अपने आगे के रास्ते के निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकें। क्योंकि यही वह 4 या 5 साल होते हैं जिन के सहारे कोई भी युवा किसी अच्छी जगह खुद को स्थापित कर सकता हैं। अपनी अच्छी पढाई ,अच्छे मार्गदर्शकों का साथ ,और एक प्रोत्साहित करने वाला वातावरण उसे ऊचाइयों पर ले जाने में मददगार सिद्ध होता हैं। जिस के लिए हमें पहले अपने आस पास का माहौल सुधारना होगा। सही , अच्छे माहौल और भली संगत का असर तुरंत दिखेगा। युवा के मन को सयंत रखने के लिए जरूरी है कि कॉलेज में विद्यार्थी और अध्यापक के बीच एक समुचित तालमेल का निर्माण किया जाए।
अब ये सोचे कि इस चुनाव की प्रक्रिया से क्या किसी को कोई लाभ मिलता है ? नहीं ! ये सब बड़े नेताओं के चोंचलेँ है। उन्हें अपने चुनावों के समय कार्यकर्ताओं के जिस फ़ौज की जरूरत पड़ती है उस को वह इन्ही कॉलेज छात्रों के जरिये पूरा करते हैं वरना ये सोचें कि इतने वर्ष इन चुनावों में ख़राब करने के बाद कितने छात्र उच्च स्तर की राजनीती में शामिल हो पातें है। और यदि शामिल हो भी गए तो क्या आज राजनीती का स्तर अच्छा रह पाया है कि उस में घुस कर गर्व महसूस किया जा सके। आप खुद अंतर महसूस करें कि किसी का पुत्र या पुत्री सिविल सेवा परीक्षा में अव्वल आया हो और दूसरी तरफ किसी एक ने नेता बनने की ओर कदम बढ़ाया हो तो आप किस में ज्यादा प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। यकीनन सिविल सेवा के लिए………क्योंकि ये पूरे जीवन का सौदा होता हैं। कॉलेजों के इन चुनावों ने पढाई के प्रति छात्र की रूचि को लगभग ख़त्म सा कर दिया है अब तो छात्राएं भी इस मैदान में कूदने लगी हैं। प्रचार के दिनों के हाल देखें की पूरा शहर ही बेवजह के पोस्टरों और पैम्प्लेट्स से भरा रहता है। कितना खर्च आता है वह एक अलग मुद्दा है। क्योंकि रईस छात्र छात्राओं के लिए धन खर्च करना अपनी प्रसिद्धि की कीमत पर नगण्य दिखता है।
इन सब में सब से ज्यादा अगर किसी का नुकसान होता है तो वह है सही मायनो में पढ़ने वाले चंद छात्र छात्राओं का। पढाई का माहौल प्रभावित होने से इस नुकसान का खामियाजा वह अपने भविष्य को दांव पर लगा कर चुकाते हैं कुछ ऐसे भी छात्र छात्राएं होते है जो गावों से किसी निर्धन परिवार के हो कर भी बड़े सपने की आस में अच्छे से अच्छे कॉलेज में दाखिला लेते है। और पढ़ कर आगे बढ़ने के लिए दिल से प्रयास करने का माद्दा भी रखते हैं। उनका भविष्य दावं पर लगाने का कार्य ये छात्र संघ चुनाव बखूबी करते हैं। ये प्रक्रिया अब बंद होनी चाहिए और कॉलेज और यूनिवर्सिटी में सिर्फ पढाई और प्रशिक्षण कक्षाएं चलनी चाहिए जिस से विद्यार्थी को कुछ और सोचने का समय ही न मिले। और वह अपने भविष्य के प्रति केंद्रित रहें। समय गुजरने के बाद लाख पछता लो कुछ नहीं किया जा सकता अतः जो समय अपने भविष्य की योजनाएं बनाने का है उसे इस तरह की गतिविधियों में नष्ट न करें। वरना पूरे जीवन बिना किसी एक मुश्त (permanent ) कार्य के निकालना भारी पड़ने लगेगा। क्योंकि ये जीवन है और इस जीवन से जुड़े अनेकों खर्चों के लिए एक अच्छे काम की व्यवस्था आवश्यक है। ये एक शाश्वत सत्य है इसे स्वीकार करें।
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