भविष्य की चिंता में वर्तमान का पतन ..........!

चिंता चिता के सामान है ये सत्य हम  सभी जानते हैं।  फिर भी जीवन में अनेक मुद्दों को लेकर हम हमेशा चिंतित रहते हैं। इस का वर्णन मैं एक उदाहरण से बताना चाहती हूँ। मेरे पति जिन्हे हवाई जहाज दूर से देखने का बहुत शौक है बैठने से हमेशा डरते हैं। कारण ये नहीं कि उन्हें ऊचाइयों से डर लगता है या वह कभी बैठे नहीं हैं। बल्कि असल वजह उनकी चिंता हैं। उन्हें एक बार किसी सरकारी काम के कारण ऑस्ट्रेलिया जाना पड़ा। और वहां 4 -5  माह रुकना भी था। हवाई जहाज में बैठने और 16 -17 घंटे के सफर के नाम से उन्हें ये चिंता सताने लगी की ईश्वर न करें यदि इतनी दूर जा कर उन्हें कुछ हो गया तो उनके परिवार का क्या होगा। जिस वस्तु में उन्हें इतने रूचि थी उसका मजा लेने के बजाये वह डरते डरते बैठ तो गए और ईश्वर की कृपा से सही सलामत पहुँच भी गए।  पर लौटते समय फिर यही डर उनके दिलों दिमाग पर हावी होने लगा और नतीजा ये हुआ की उन्हें हॉस्पिटल में दाखिल कराना पड़ा।  जब उन्होंने डॉ. से अपने डर की बात बताई तब उसे उनकी तकलीफ का कारण समझ में आया। और बिना किसी बीमारी के उनकी चिंता को उसकी वजह बताया। इस वाकये को बताने की वजह ये है की कभी कभी हम कुछ घटनाओं के न होते हुए भी उनके होने का अंदाजा लगा कर , पहले से ही उनकी चिंता करने लगते है। और इसी चिंता की वजह से हम अपना आज का आनंद उठाना भूल जाते हैं। शायद ये वजह उनके मधुर प्रवास का आनंद उठा पाने में भी बाधक रही हो।
           अनदेखे अनजाने भविष्य के डर से जीना नहीं छोड़ा जाता।  जीना ,अर्थात खुश हो कर लम्हों का लुत्फ़ उठा कर जीना। ऐसा नहीं की हमारे जीवन में खुशियां नहीं , छोटी छोटी  खुशियां कभी कभी बड़ा सुकून दे जाती है महसूस कर के देखें। बोर हो रहे दिन में एकदम से किसी अच्छी मूवी का कार्यक्रम  बन जाए तो क्या मजा आता है। तुरंत तैयार होना  ,समय पर पहुँचाना और टिकट के लिए प्रयास करना ये सब एक ख़ुशी की ही तरह होता है। इस लिए बड़ी बड़ी चिंताओं को भूल कर मजे किये जा सकते हैं। पर हम न जाने क्यों छोटी छोटी समस्याओं को तूल दे कर इतना बड़ा बना देते हैं की वह बाकि सारी ख़ुशियों को ख़त्म कर देती हैं। जब हम इन खुशियों में दुनियां तलाशने लगेंगें तब सही मायनों में जीना प्रारम्भ करेंगे। कुछ घटनाओं को अप्रत्याशित होने दें जिस से एक surprise वाला महत्व समझ में आएगा। यदि हर घटना या परिस्थिति को हम पहले से ही समझने का प्रयास कर लेंगे तो उसे समय पर जीना का मजा नहीं आएगा। इस लिए कुछ छोड़ देना चाहिए जो की भविष्य निर्धारित करें और परिणाम जैसा भी हो उसे हम नियति के रूप में स्वीकार करें। मानव का जीवन कर्म और नियति दोनों से ही मिल कर बना है ये सोच कर दुखी होना कि ये हमारी नियति में नहीं गलत है क्योंकि कर्म शायद उसे हांसिल करा सकता है। यदि लाख कोशिशों के बाद भी वह न मिले तब उसे नियति मान जाना चाहिए। इस लिए  चिंता या परेशानी का सवाल उठेगा ही नहीं यदि उसे आप अपने जीवन का एक हिस्सा मान कर स्वीकार कर लें। जो हुआ नहीं उस की क्या चिंता करना और जो हो रहा है वह आप ही की नियति है जिसे चाहे तो आप तात्कालिक कर्म से बदलने का प्रयास कर सकते हैं। यही जीवन जीने का तरीका होना चाहिए। जिस से आप कभी भी चिंतित या दुखी नहीं रहेंगे और अपने कर्मों पर यकीन करना सीख जायेंगे। 

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