सामाजिक मुद्दों पर प्रतिकार ,न्याय की पुकार………!
न्याय हर किसी आम खास की जरूरत है। जब भी किसी को ये लगे कि उस के साथ कुछ अनुचित हो रहा है तब वह न्याय की आस लगाएगा। हाँ ये अलग बात है कि ये तो न्याय ही तय करता है कि दो लोगो के सही और गलत के बीच वाकई सही कौन है। ये न्याय ही है जो लक्ष्य की ओर बढ़ाये क़दमों को बलिदान , संघर्ष और तकलीफों के बाद भी समर्पित रहने का हौसला देता है। कोई भी दमनकर्ता अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं सौंपता बल्कि अत्याचार व दमन सहने वालों को परिश्रम से इसकी मांग करनी होती है। आज की सबसे बड़ी त्रासदी ये नहीं है कि बुरे अत्याचार कर रहे हैं बल्कि ये है कि उस अत्याचार को हम मौन रह के सह रहें हैं। सही मायनों में हमें अपने जीवन को उस दिन ख़त्म समझ लेना चाहिए जिस दिन सामाजिक मुद्दों पर मौन रह कर जो है ,जैसा है की स्थिति में रहने के लिए छोड़ देते हैं। भगवान् श्रीराम ने जब सागर पार कर श्रीलंका जाने की सोची तब यही प्रश्न सामने आया कि पुल आखिर बनेगा कैसे ? पर एक एक पत्थर जोड़ कर पूरे सागर पर पुल बना लेना इस बात का प्रतीक है कि एक अकेला पहले शुरुआत तो करे रास्ते अपने आप बन जायेंगे। किसी भी व्यक्ति का निर्णायक आंकलन ये नहीं है की सुख और सहूलियत के समय वह कैसा है कहाँ खड़ा हैं। बल्कि ये है की चुनौती और विवाद के समय उसकी भूमिका क्या है।
ये हमेशा ध्यान रखने वाली बात है कि कोई आप पर तब तक सवार नहीं हो सकता जब तक आप तन कर खड़े हो जैसे ही आपने कमर झुकाई लोग आप के ऊपर चढ़ने औए सवार होने का प्रयास प्रारम्भ कर देंगे। इस लिए सीमित निराशा को स्वीकार कर , असीमित आशा की ओर लगातार बढ़ते रहना चाहिए। जो जीवन का हौसला बनती है। प्रगति कभी भी अपने आप नहीं होती उसके लिए व्यक्तिगत चिंताओं के दायरे से ऊपर उठ कर वृहद चिंताओं के समाधान के बारे में सोचना चाहिए। जब आस पास समाधानों के रास्ते दीखते होंगे तभी आप निश्चिन्त कदम बढ़ा सकेंगे। कभी कभी ये मानने को दिल करता है कि हमारी व्यग्यानिक उन्नति ने आध्यात्मिक शक्ति को ख़त्म कर दिया है। जो संकट के समय एक बड़े हौसले का कार्य करती थी। और ये बदलाव तभी आएगा जब शिक्षा को थोड़ा अध्यात्म से जोड़ा जाएगा। शिक्षा पूरी एकाग्रता से विचार करने की शक्ति देती है। ये शक्ति ये सीखा सकती है की यदि तुम उड़ नहीं सकते तो दौड़ो , यदि दौड़ नहीं सकते तो चलो ,और यदि चल भी नहीं सकते तो कम से कम अपने विचारों को तो प्रवाहित होने से मत रोको। क्योकि सच्चा व्यक्ति वह है जो अपने विचारों से यदि प्रभावित न कर पाये तो इतना सक्षम हो कि दूसरे के विचार ही बदल दे। ये काबिलियत व्यक्ति विशेष के लिए न्याय का काम करती है। क्योंकि जब कोई सही राय के साथ काम करता है तब उसके साथ गलत होने का डर ख़त्म हो जाता है और उसे न्याय की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जीवन को दो तरीकों से जिया जा सकता है एक अन्यायपूर्ण और एक न्यायपूर्ण। जो भी रास्ता आप चुनते हो वह पलट कर आप को मिलता जरूर है क्योंकि दुनिया गोल है ये सत्य अमिट है। इस लिए चुनाव ऐसा हो कि आप के साथ सब का जीवन सही दिशा में सही तरीके से जिया जाए।
न्याय हर किसी आम खास की जरूरत है। जब भी किसी को ये लगे कि उस के साथ कुछ अनुचित हो रहा है तब वह न्याय की आस लगाएगा। हाँ ये अलग बात है कि ये तो न्याय ही तय करता है कि दो लोगो के सही और गलत के बीच वाकई सही कौन है। ये न्याय ही है जो लक्ष्य की ओर बढ़ाये क़दमों को बलिदान , संघर्ष और तकलीफों के बाद भी समर्पित रहने का हौसला देता है। कोई भी दमनकर्ता अपनी ख़ुशी से स्वतंत्रता नहीं सौंपता बल्कि अत्याचार व दमन सहने वालों को परिश्रम से इसकी मांग करनी होती है। आज की सबसे बड़ी त्रासदी ये नहीं है कि बुरे अत्याचार कर रहे हैं बल्कि ये है कि उस अत्याचार को हम मौन रह के सह रहें हैं। सही मायनों में हमें अपने जीवन को उस दिन ख़त्म समझ लेना चाहिए जिस दिन सामाजिक मुद्दों पर मौन रह कर जो है ,जैसा है की स्थिति में रहने के लिए छोड़ देते हैं। भगवान् श्रीराम ने जब सागर पार कर श्रीलंका जाने की सोची तब यही प्रश्न सामने आया कि पुल आखिर बनेगा कैसे ? पर एक एक पत्थर जोड़ कर पूरे सागर पर पुल बना लेना इस बात का प्रतीक है कि एक अकेला पहले शुरुआत तो करे रास्ते अपने आप बन जायेंगे। किसी भी व्यक्ति का निर्णायक आंकलन ये नहीं है की सुख और सहूलियत के समय वह कैसा है कहाँ खड़ा हैं। बल्कि ये है की चुनौती और विवाद के समय उसकी भूमिका क्या है।
ये हमेशा ध्यान रखने वाली बात है कि कोई आप पर तब तक सवार नहीं हो सकता जब तक आप तन कर खड़े हो जैसे ही आपने कमर झुकाई लोग आप के ऊपर चढ़ने औए सवार होने का प्रयास प्रारम्भ कर देंगे। इस लिए सीमित निराशा को स्वीकार कर , असीमित आशा की ओर लगातार बढ़ते रहना चाहिए। जो जीवन का हौसला बनती है। प्रगति कभी भी अपने आप नहीं होती उसके लिए व्यक्तिगत चिंताओं के दायरे से ऊपर उठ कर वृहद चिंताओं के समाधान के बारे में सोचना चाहिए। जब आस पास समाधानों के रास्ते दीखते होंगे तभी आप निश्चिन्त कदम बढ़ा सकेंगे। कभी कभी ये मानने को दिल करता है कि हमारी व्यग्यानिक उन्नति ने आध्यात्मिक शक्ति को ख़त्म कर दिया है। जो संकट के समय एक बड़े हौसले का कार्य करती थी। और ये बदलाव तभी आएगा जब शिक्षा को थोड़ा अध्यात्म से जोड़ा जाएगा। शिक्षा पूरी एकाग्रता से विचार करने की शक्ति देती है। ये शक्ति ये सीखा सकती है की यदि तुम उड़ नहीं सकते तो दौड़ो , यदि दौड़ नहीं सकते तो चलो ,और यदि चल भी नहीं सकते तो कम से कम अपने विचारों को तो प्रवाहित होने से मत रोको। क्योकि सच्चा व्यक्ति वह है जो अपने विचारों से यदि प्रभावित न कर पाये तो इतना सक्षम हो कि दूसरे के विचार ही बदल दे। ये काबिलियत व्यक्ति विशेष के लिए न्याय का काम करती है। क्योंकि जब कोई सही राय के साथ काम करता है तब उसके साथ गलत होने का डर ख़त्म हो जाता है और उसे न्याय की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। जीवन को दो तरीकों से जिया जा सकता है एक अन्यायपूर्ण और एक न्यायपूर्ण। जो भी रास्ता आप चुनते हो वह पलट कर आप को मिलता जरूर है क्योंकि दुनिया गोल है ये सत्य अमिट है। इस लिए चुनाव ऐसा हो कि आप के साथ सब का जीवन सही दिशा में सही तरीके से जिया जाए।
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