स्वयं से प्रेम , एक आकर्षक व्यक्तित्व 👍
स्वयं से प्रेम अर्थात एक आकर्षक व्यक्तित्व……… !
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आज आप सभी से एक अनोखा सत्य बांटना चाहती हूँ और उसका ज्ञान मुझे मेरी बेटी से हुआ। जरूरी नहीं कि सिर्फ बड़े ही बच्चो को समझाते रहें और फायदेमंद सलाह दें। अनेक अवसर पर यह काम बच्चे भी कर जाते हैं। क्योंकि सोच से तो वह भी परिपक्व हो ही चुके हैं। भले ही वह छोटे हो पर उनका भी अपना circle बन जाता है और उस के जरिये कई सोच आपस में मिलती हैं तब कभी कभी कुछ नया और सार्थक जरूर बाहर आता है। और मैं नहीं समझती की इसे अपनाने में कोई छोटापन महसूस होना चाहिए। अच्छाई कही से भी , कभी भी मिले तो उसे लेने का मौका चूकना अपने अच्छे भविष्य को ठोकर मारना होता है। इसी तरह की एक अच्छी ,उम्दा सोच से कुछ दिन पहले मैं वाकिफ हुई। और वह सोच थी कि सब से पहले खुद से प्यार करों ,स्वयं को पसंद करों और स्वयं के बारे में अच्छा अर्थात positive सोचो। अपने लिए वह सब करने की चेष्टा करों जो तुम्हे बेहतर और आकर्षक बना सके।
जीवन में एक समय आने के बाद हम सब अपने आप को पसंद करना छोड़ देते हैं। अपनी रुचियाँ ,अपना स्वास्थय , अपना भविष्य या अपना रूपं गुण ये सब जीवन में कही पीछे छूटने लगता हैं। सिर्फ रोजमर्रा की जरूरतों में उलझ कर अपना समय गुजार लेना ही जीवन की नियति बन जाता है। इसका कारण सामाजिक, पारिवारिक और व्यावसायिक जीवन की व्यस्तता हैं। ये व्यस्तता जीवन की बहुत सी खुशियों , यहाँ तक कि स्वास्थ्य को भी खा जाती है। परन्तु व्यक्ति नहीं समझ पाता। क्या आप ने कभी खुद को आईने में देख कर कहा है कि मैं पहले सा सुंदर नहीं रहा या मेरा स्वास्थय पहले सा नहीं रहा या फिर ये ही महसूस किया हो कि समय के साथ अब मुझमें भी कुछ बदलाव की जरूरत हैं। नहीं न। … यही शुरुआत है आप के नकारात्मक रवैये की।
मेरी एक प्रिय सहेली है उसे मैंने हमेशा खुद पर गुरुर करते और खुद को हमेशा , खुद का favourite महसूस करते देखा है । उसकी फ़ोन की रिंग टोन भी i am the best गीत है। शुरू में कुछ अजीब सा लगा क्योंकि मैं ऐसा नहीं सोचती थी पर अब समझ आया कि वह सही है और इसी वजह से आज वह स्मार्ट और active रह पाती है। क्योंकि सबसे पहले वह अपना ध्यान रखती हैं। उसे ये पता है कि जीवन उसका है और उसे जीने का अंदाज भी खास होना चाहिए। परिवार के कार्यों के साथ उसने अपनी आवश्यकताओं को भी प्राथमिकता की श्रेणी में ही रखा है। इसी तरह मेरी बेटी की एक अध्यापिका भी अपनी उम्र को पीछे छोड़ते हुए खुद को इतना presentable बना कर रखती है कि उन के सामने उनसे कम उम्र की लड़कियां भी फीकी नजर आती हैं। जिस का नतीजा उनका आकर्षक व्यक्तित्व है जो आज पूरे विद्यालय में सभी का चहेता बन गया है। और ये ही खुद से प्यार है ,नहीं तो आज हर औरत या पुरुष अपनी जिंदगी के रोजाना की जरूरतों में इतना उलझ जातें हैं कि अपने प्रति उदासीन हो जाते हैं। ऐसा मेरे साथ भी है और ये सही नहीं हैं। इस तथ्य से जुडी दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि जब आप व्यक्तित्व की ओर से कमजोर सिद्ध होने लगते हैं तब आपके व्यव्हार में भी नकारात्मक परिवर्तन आने लगता है। कई स्त्रियां तो ये सोच लेती हैं कि कौन सी दोबारा शादी करनी हैं कि खुद को सजा - सवाँर कर रखा जाए। जबकि सोच ये होनी चाहिए कि हम दूसरों के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए सजें ,तैयार हों और अच्छे लगें। पहले आईने में खुद को अच्छा कहने के लिए प्रयास करना चाहिए। ऐसा हो इस के लिए कोशिश तो करनी होगी और इस कि शुरुआत सबसे पहले अपने स्वास्थय से करनी होगी। क्योंकि स्वास्थय ही वह अनमोल खजाना है जो रंग रूप दोनों को कायम रख सकता है। इस के बाद अपने पहनने ओढ़ने के तरीके में बदलाव लाया जा सकता है। समय के साथ चलते हुए नए ढंग के वस्त्रों का चुनाव व्यक्तित्व को और आकर्षक बनाता हैं। इस के बाद खान -पान का ध्यान रखना आवश्यक है जिस से रोग या तकलीफें दूर रह पाएंगी। और आप अच्छी तरह से active रह सकते हैं। ये नियम सिर्फ स्त्रिओं पर ही लागू नहीं होता बल्कि आज कल पुरुष भी विवाह के बाद खानपान की गलत आदतों के कारण अपने व्यक्तित्व के प्रति उदासीन दिखतें है जिसका खमियाजा शरीर उठाता हैं। मैंने एक फिल्म कभी ख़ुशी कभी ग़म में करीना कपूर को पू के किरदार में खुद पर हद से ज्यादा इतराते देखा तो उस समय उसका चरित्र अच्छा नहीं लगा और ये महसूस किया कि कोई खुद को इस तरह से कैसे प्रदर्शित कर सकता है। पर इसे जब बाद में इस नजरिये से देखा कि खुद को पसंद करना एक गुण है जो कि हम एक समय के बाद भूल जाते है। और उदासीनता हमारा व्यक्तिव खा जाती हैं। अतः अपने व्यक्तित्व को इस तरह से तैयार करें कि सबसे पहले आप खुद उसे सराह सकें। देखेंगे की बाद में सभी उसका समर्थन करेंगें। और ये आज का प्रथम सत्य है कि जो दिखता है वही बिकता है। अर्थात जो प्रदर्शनीय है उसी की कीमत है। बेकार और फालतू वस्तु की कोई कीमत नहीं होती। अपने व्यक्तित्व से इस फालतूपन का label हटाइये उसे special बनाइये। अपनी इज्जत खुद करोगे तभी दूसरे तुम्हे इज्जत देंगे।एक सुविचार में Roosevelt के अनुसार no one can make you feel inferior without your consent . मैं ऐसा लिख पा रहीं हूँ क्योंकि मैंने भी इस सत्य को स्वीकार करके इस और अपना पहला कदम उठा लिया है और अब वह सब करने की शुरुआत हो चुकी है जिस से बेहतर मैं बना जा सकता हैं। इस सत्य की स्वीकृति के साथ ही आप के जीवन का एक नया अध्याय शुरू होगा जो की अच्छा और चमकदार होगा।
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आज आप सभी से एक अनोखा सत्य बांटना चाहती हूँ और उसका ज्ञान मुझे मेरी बेटी से हुआ। जरूरी नहीं कि सिर्फ बड़े ही बच्चो को समझाते रहें और फायदेमंद सलाह दें। अनेक अवसर पर यह काम बच्चे भी कर जाते हैं। क्योंकि सोच से तो वह भी परिपक्व हो ही चुके हैं। भले ही वह छोटे हो पर उनका भी अपना circle बन जाता है और उस के जरिये कई सोच आपस में मिलती हैं तब कभी कभी कुछ नया और सार्थक जरूर बाहर आता है। और मैं नहीं समझती की इसे अपनाने में कोई छोटापन महसूस होना चाहिए। अच्छाई कही से भी , कभी भी मिले तो उसे लेने का मौका चूकना अपने अच्छे भविष्य को ठोकर मारना होता है। इसी तरह की एक अच्छी ,उम्दा सोच से कुछ दिन पहले मैं वाकिफ हुई। और वह सोच थी कि सब से पहले खुद से प्यार करों ,स्वयं को पसंद करों और स्वयं के बारे में अच्छा अर्थात positive सोचो। अपने लिए वह सब करने की चेष्टा करों जो तुम्हे बेहतर और आकर्षक बना सके।
जीवन में एक समय आने के बाद हम सब अपने आप को पसंद करना छोड़ देते हैं। अपनी रुचियाँ ,अपना स्वास्थय , अपना भविष्य या अपना रूपं गुण ये सब जीवन में कही पीछे छूटने लगता हैं। सिर्फ रोजमर्रा की जरूरतों में उलझ कर अपना समय गुजार लेना ही जीवन की नियति बन जाता है। इसका कारण सामाजिक, पारिवारिक और व्यावसायिक जीवन की व्यस्तता हैं। ये व्यस्तता जीवन की बहुत सी खुशियों , यहाँ तक कि स्वास्थ्य को भी खा जाती है। परन्तु व्यक्ति नहीं समझ पाता। क्या आप ने कभी खुद को आईने में देख कर कहा है कि मैं पहले सा सुंदर नहीं रहा या मेरा स्वास्थय पहले सा नहीं रहा या फिर ये ही महसूस किया हो कि समय के साथ अब मुझमें भी कुछ बदलाव की जरूरत हैं। नहीं न। … यही शुरुआत है आप के नकारात्मक रवैये की।
मेरी एक प्रिय सहेली है उसे मैंने हमेशा खुद पर गुरुर करते और खुद को हमेशा , खुद का favourite महसूस करते देखा है । उसकी फ़ोन की रिंग टोन भी i am the best गीत है। शुरू में कुछ अजीब सा लगा क्योंकि मैं ऐसा नहीं सोचती थी पर अब समझ आया कि वह सही है और इसी वजह से आज वह स्मार्ट और active रह पाती है। क्योंकि सबसे पहले वह अपना ध्यान रखती हैं। उसे ये पता है कि जीवन उसका है और उसे जीने का अंदाज भी खास होना चाहिए। परिवार के कार्यों के साथ उसने अपनी आवश्यकताओं को भी प्राथमिकता की श्रेणी में ही रखा है। इसी तरह मेरी बेटी की एक अध्यापिका भी अपनी उम्र को पीछे छोड़ते हुए खुद को इतना presentable बना कर रखती है कि उन के सामने उनसे कम उम्र की लड़कियां भी फीकी नजर आती हैं। जिस का नतीजा उनका आकर्षक व्यक्तित्व है जो आज पूरे विद्यालय में सभी का चहेता बन गया है। और ये ही खुद से प्यार है ,नहीं तो आज हर औरत या पुरुष अपनी जिंदगी के रोजाना की जरूरतों में इतना उलझ जातें हैं कि अपने प्रति उदासीन हो जाते हैं। ऐसा मेरे साथ भी है और ये सही नहीं हैं। इस तथ्य से जुडी दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि जब आप व्यक्तित्व की ओर से कमजोर सिद्ध होने लगते हैं तब आपके व्यव्हार में भी नकारात्मक परिवर्तन आने लगता है। कई स्त्रियां तो ये सोच लेती हैं कि कौन सी दोबारा शादी करनी हैं कि खुद को सजा - सवाँर कर रखा जाए। जबकि सोच ये होनी चाहिए कि हम दूसरों के लिए नहीं बल्कि खुद के लिए सजें ,तैयार हों और अच्छे लगें। पहले आईने में खुद को अच्छा कहने के लिए प्रयास करना चाहिए। ऐसा हो इस के लिए कोशिश तो करनी होगी और इस कि शुरुआत सबसे पहले अपने स्वास्थय से करनी होगी। क्योंकि स्वास्थय ही वह अनमोल खजाना है जो रंग रूप दोनों को कायम रख सकता है। इस के बाद अपने पहनने ओढ़ने के तरीके में बदलाव लाया जा सकता है। समय के साथ चलते हुए नए ढंग के वस्त्रों का चुनाव व्यक्तित्व को और आकर्षक बनाता हैं। इस के बाद खान -पान का ध्यान रखना आवश्यक है जिस से रोग या तकलीफें दूर रह पाएंगी। और आप अच्छी तरह से active रह सकते हैं। ये नियम सिर्फ स्त्रिओं पर ही लागू नहीं होता बल्कि आज कल पुरुष भी विवाह के बाद खानपान की गलत आदतों के कारण अपने व्यक्तित्व के प्रति उदासीन दिखतें है जिसका खमियाजा शरीर उठाता हैं। मैंने एक फिल्म कभी ख़ुशी कभी ग़म में करीना कपूर को पू के किरदार में खुद पर हद से ज्यादा इतराते देखा तो उस समय उसका चरित्र अच्छा नहीं लगा और ये महसूस किया कि कोई खुद को इस तरह से कैसे प्रदर्शित कर सकता है। पर इसे जब बाद में इस नजरिये से देखा कि खुद को पसंद करना एक गुण है जो कि हम एक समय के बाद भूल जाते है। और उदासीनता हमारा व्यक्तिव खा जाती हैं। अतः अपने व्यक्तित्व को इस तरह से तैयार करें कि सबसे पहले आप खुद उसे सराह सकें। देखेंगे की बाद में सभी उसका समर्थन करेंगें। और ये आज का प्रथम सत्य है कि जो दिखता है वही बिकता है। अर्थात जो प्रदर्शनीय है उसी की कीमत है। बेकार और फालतू वस्तु की कोई कीमत नहीं होती। अपने व्यक्तित्व से इस फालतूपन का label हटाइये उसे special बनाइये। अपनी इज्जत खुद करोगे तभी दूसरे तुम्हे इज्जत देंगे।एक सुविचार में Roosevelt के अनुसार no one can make you feel inferior without your consent . मैं ऐसा लिख पा रहीं हूँ क्योंकि मैंने भी इस सत्य को स्वीकार करके इस और अपना पहला कदम उठा लिया है और अब वह सब करने की शुरुआत हो चुकी है जिस से बेहतर मैं बना जा सकता हैं। इस सत्य की स्वीकृति के साथ ही आप के जीवन का एक नया अध्याय शुरू होगा जो की अच्छा और चमकदार होगा।
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