मन AI का प्रतिरूप
मन AI का प्रतिरूप : •••••••••••••••••••••
आज AI का उपयोग बहुत हो रहा है। यहां तक कि ये AI सामान्य जीवन की गतिविधियों में भी घुस चुका है। जानकारियां जुटाने, कोई काल्पनिक सोच को सामने लाने, कोई चित्र या स्थिति को मनमाफ़िक बनाने या फ़िर नए सुझाव सोच और कलात्मकता को apply करने के लिए AI को प्रयोग किया जा रहा। ये आज की व्यज्ञानिक प्रगति का परिणाम है।
परन्तु क्या किसी ने कभी ये सोचा है कि हमारा मन कब से AI की भूमिका निभा रहा....किसी स्थान, कोई चित्र, कोई व्यक्ति, कोई स्थिति का बस नाम लिया जाए। मन उसकी काल्पनिक छवि बना लेता है। उसे हमारे साथ जोड़ कर खड़ा कर देता है। भले ही वो छवि accurate ना हो पर जो हमें अच्छी लग सकती हो वैसी तो बना ही देता है। मतलब हमारी रुचियों, ख्वाहिशों, जिज्ञासाओं को मन कितनी बेहतरी से पढ़ कर उसका खाका उतार देता है। मनरूपी AI एक अच्छा खासा संसार बसा के रखता है व्यक्ति के अंदर। वह वो संसार होता गया जो खुद व्यक्ति का सोचा हुआ पसंद का होता है।
लेकिन मन और आज के AI में जो सबसे बड़ा फ़र्क़ है वह है किसी चित्र, स्थिति या संदेश की मूल भावना को खत्म करना। आज का AI उस orignal की मूल भावना या महत्व को बिल्कुल खत्म करके उसे एक नए कलेवर में ढाल देता है। जिससे उसका मूल महत्व खत्म हो जाता है। किसी तस्वीर के पीछे का संदेश, कोई खास विचार सब AI की करामात से खत्म हो जाते हैं। और ये बदलाव का खेल कभी कभी नकारात्मक सोच के साथ भी विकसित होता है। जैसे चित्रों के साथ गंदा प्रयोग वगैरह...
बुद्धि किसी स्थिति, चित्र, या सोच को आनंद में बदलते हुए उसे जीवंत करने की कोशिश करती है। और मन उस को सच बनाने की सनक में जुड़कर नए नए प्रयोग करता गया। इसी तरह AI भी अब सनक की तरह लोगों की सोच को नियंत्रित कर रहा है। और कुछ और की चाह में AI के लोग मूल प्रवृति का भाव ही खोते जा रहे। सब कुछ original खत्म कर रहे।
जिस तरह मन की उड़ान और परीकल्पनाओं पर फ़िल्टर लगाने के लिए एक बेहतरीन अंकुश....मौन है। क्योंकि मौन रहकर ही सोच को सही ग़लत दिशा का अंतर समझाया जा सकता है। उसी तरह AI के लिए भी एक फ़िल्टर होना चाहिए। नहीं तो बेकाबू विकास पुरातन संस्कृति को खा जायेगा। और एक समय ऐसा भी आएगा जब हमारे पास पुराना साक्ष्य कुछ भी नहीं बचेगा। क्योंकि हमने उसे नया देखने की चाह में बिल्कुल बदल दिया। हम ये भूल गए कि कुछ चीज़ें पुरानी ही अच्छी लगती हैं।
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