नियमितता की आदत

नियमितता की आदत :        ~~~~~~~~~~~~~~~~

हम पूरे दिन को तो एक नियम में बांध कर नहीं जी सकते। पर दो चार आदतें या क्रियाएं ऐसी fix करके रख सकते हैं। जिससे उनकी नियमितता ना टूटे।                            

 हम सभी कर्म के सिद्धांत को मानते हैं। कि हम पुरुषार्थ करें,अच्छे कर्म करें। पर कर्म करते हुए रवैया क्या रखें कि परिणाम अच्छा मिले ये ध्यान नहीं देते। अगर किसी कार्य को करने से पूर्व एकदम से ये विचार आये की दो चार सेकंड बाद करेंगे तो ये आलस्य और टालमटोली वाला रवैया है। कोई भी आदत यूँ ही नहीं जीवन में घर करती है। उसके लिए निश्चित समय और नियमितता बांधनी पड़ती है।

वैसे तो चाहे हम पूरे दिन को नियमों से चला सकते हैं। इसके लिए दो चार आदतों से शुरू करना चाहिए। जब वह आदतें जीवन में नियम बन जाएं तो कुछ अन्य आदतों की पालना शुरू की जानी चाहिए। इस तरह पूरा दिन एक सार ढल जाएगा। कुछ दिनों को छोड़कर जब आप शहर से बाहर हों या घर पर कोई अतिथि आया हो या हारी बीमारी हो। ये विपरीत परिस्थितियां है। जो समय की कमी के कारण नियम पालना करने से रोकती हैं। फिर भी यदि नियम की पालना निरंतर हो रही तो वह समय उस कार्य की याद जरूर दिलवाएगा। तो जो दो चार दिन अतिव्यस्तता के कारण अगर नियम नहीं हो पाते तो आगे होने लगेंगे। 

इसलिए ये शरुआत करें एक दो आदतों से, जिनको करने का नियम बन जायेगा। 

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