औरत होने का अर्थ जोड़ना है तोड़ना नहीं !

 औरत होने का अर्थ जोड़ना है तोड़ना नहीं......!!                ***********************

मैं भी एक औरत हूँ। पर इस बात से इंकार नहीं करूंगी कि औरतें कलेश का कारण बनती हैं। और पुरुष वर्ग एक हद तक उस कलेश को सहन कर पाता है। जब बात हद से ज़्यादा हो जाती है तब उन्हें अपनी जान देकर उस रास्ते से हटने के अलावा कोई और जरिया नहीं सूझता। 

अभी हाल ही में तीन लगातार घटनाओं ने इस ओर सभी का ध्यान खींचा। पहली घटना में बेंगलुरु के एक AI इंजीनियर व्यक्ति अतुल ने पत्नी, सास, साले व ससुर पर मानसिक प्रताड़ना और कानूनी प्रक्रिया में उलझा कर त्रस्त कर देने के बाद परेशान होकर आत्महत्या कर ली। और सुसाइड नोट में सब का खुलासा किया। दूसरी घटना में जोधपुर के पास एक परिवार के माँ और दो युवकों ने आत्महत्या कर ली। बड़े बेटे का विवाह कुछ ही समय पूर्व हुआ था। वह बहू सास पति और देवर को खूब परेशान कर रही थी।और तीनों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करवा दिया था। पुलिस की कार्यवाही और बहू के आरोपों से दुखी होकर एक लंबा सुसाइड नोट लिख कर तीन जानें चली गईं। तीसरी घटना में जयपुर के एक डॉक्टर ने भी पत्नी की बेवजह की धमकियों और आरोपों से परेशान होकर फांसी लगा ली। और सुसाइड नोट में अपनी मौत के लिए पत्नी को जिम्मेदार बनाया। ये तीन किस्से तो प्रकाश में आये तो पता चला। अन्यथा कितने की ऐसे परिवार होंगे जहां इस तरह की परेशानियां चल रही होंगी पर पुरुष वर्ग उसे झेल रहा है। 

अब इन घटनाओं के मूल कारणों पर चर्चा करते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा...अमूमन ये मान कर की स्त्रियां पुरुषों के मुकाबले कमजोर हैं। नियमों कानूनों में उनको अतिरिक्त लाभ दिया गया। ताकि वह शोषण के वक्त अपनी सुरक्षा और सुविधा बनाये रख सके। पर किसी भी लाभ को अपने फायदे के लिए उपयोग में लाना भी गलत ही है। विवाह में सिर्फ लड़का लड़की ही नहीं दो परिवारों का जुड़ना होता है। लड़की को सभी से बनाकर रखनी होती है। जबकि आज नई पीढ़ी इतनी self centered हो गई कि उसे सिर्फ खुद से मतलब है। ऐसे में सास,ससुर, देवन ननद या परिवार के अन्य सदस्य जीवन में hurdle की तरह लगने लगते हैं। छोटे छोटे मनमुटाव बड़ी खाई की तरह होने लगते है। फ़िर कुछ समय बाद बहुत ही आसान हो जाता है पति के परिवार के खिलाफ ये complaint रजिस्टर करवाना कि ये लोग मुझे दहेज के लिए या किसी अन्य वजह से प्रताड़ित कर रहे हैं। अब पुलिसिया प्रक्रिया में उलझ कर घरवालों की जिंदगी तबाह होने लगती हैं। यहां अगर कोई स्त्री अपनी  मनमाफ़िक जिंदगी भी नहीं जी पा रही हो तो वो भी शिकायत कर दे तो दूसरों को सुगमता से जीने से रोक सकती है। 

पुरुष वर्ग अपनी पत्नी उसके परिवार और अपने परिवार में सामंजस्य बिठाने का भरसक प्रयास करता है। पर सबको एक साथ ख़ुश रखना कभी कभी उसके लिए भी असंभव हो जाता है। दोनों परिवारों को संभालने का फर्ज औरत का भी होता है। पर औरत अपनी जिंदगी से इतनी obsessed हो जाती है कि उसे दूसरे की जिदंगी की तकलीफें दिखती ही नहीं। और अपनी शर्तों पर जीने के लिए वो समाज और कानून को भी साथ लेने से नहीं चूकती। ये बिल्कुल गलत है और इस तरह अपनी वजह से किसी को जीने से रोकना तो सर्वथा गलत है। 

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