दायजा की परंपरा

दायजा की परंपरा :        ****************

पुराने रीति रिवाज इतने अच्छे हैं कि वह अगर आज अमल में लाएं जाएं तो समाज की सूरत बदल सकती है। क्योंकि उस समय वह किन्हीं मूल कारणों को सोच समझकर बनाये गए थे। आपस में भाईचारा हो, गांव- घर के लोग मिलजुल कर रहे इसलिए कुछ रीति रिवाजों की परंपरा शुरू की गई जिसमें सामूहिक भागीदारी बनाई गई। जो जाति, ऊंचनीच और छोटे बड़े से ऊपर होकर सिर्फ़ भलाई की सोच कर अपनाई गई। 
                         उत्तर प्रदेश के एक गांव में दायजा नाम की एक परंपरा का चलन हुआ करता था। ये परंपरा मूलतः बेटियों की शादी के लिए बनाई गई। हर बेटी वाला परिवार इतना सक्षम नहीं होता कि तमाम सुविधाओं से सम्पन्न अपनी बेटी का विवाह कर सके। इसलिए विवाह के एक दिन पूर्व दायजा नाम की रीति करते हैं   जिसमें पूरे गांव के हर घर को न्योता दिया जाता है। वह छोटी से छोटी या अपनी इच्छानुसार बड़ी से बड़ी रकम का दान बेटी के लिए करते हैं। उनके आने पर कुछ जलपान की व्यवस्था की जाती हैं। जो कि सिर्फ़ नाममात्र की होती है। 
           गांव की बेटी का विवाह सिर्फ़ किसी एक परिवार का नहीं होता। बल्कि वह सामुदायिक आयोजन की तरह मनाया जाता है। परिवार को सहारा मिल जाता। और गवन की एकता सबको दिखती। इस तरह की परंपराओं को आज भले की रूढ़िवादीता कहा जाए पर अगर सही मायनों में देखा जाए तो ये किसी बेटी के नए जीवन और घर को व्यवस्थित बनाने की अच्छी पहल है।

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