ओपन किचन नहीं नो किचन
ओपन किचन नहीं नो किचन : •••••••••••••••••••••••••••
इनमें कमरे के कोने में ही एक स्लैप होता है और खाना गर्म करने के लिए माइक्रोवेव, चाय बनाने के लिए इलेक्ट्रिक कैटल और बेक करने के लिए अवन रखा होता है। न गैस सिलेंडर, न कोई पाइप लाइन
इस नए चलन के मुताबिक खाना बनाना बहुत ही ‘मिडल क्लास’ चीज है। आज भी बहुत से फिल्मी सितारे खाना बनाना बिल्कुल नहीं जानते। उनके घर तो नौकरों की कतार लगी होती है।
पर उसके बाद भी 'हाई-क्लास’ लोग सिर्फ़ बाहर से खाना मंगवाना पसन्द करते हैं और उसकी तस्वीर खींचकर सोशल मीडिया पर डालना भी एक शगल हैं।
खाने से सम्बंधित पच्चीसों तैयारी, फिर उसमें समय भी खपाओ और रसोई का फैलावड़ा , खाना पकाने से बर्तनों का गंदा होना फिर उन्हें मांजना पड़ता है, तो इस तरह के काम कौन करे ...जबकी वही सब बना बनाया मिल जाता है। फिर किचन ही नहीं
रहेगा, तो शादी के बाद ‘लड़की को खाना बनाना नहीं आता’ जैसे ताने भी नहीं सुनने पड़ेंगे।"
अब आपका सवाल होगा कि बिना किचन के काम कैसे चलता है। हमने इसका जवाब पता किया। जवाब है कि कुछ करोड़ के एक कमरे वाले इन फ़्लैट की पूरी बिल्डिंग का एक ही किचन होता है जिसे ‘डार्क किचन’ कहते हैं।
अगर रात के एक बजे भी आपको चाय या कॉफी की तलब उठेऔर आप इण्टरकॉम पर सूचना दें तो वह आपको फटाफट मिल जाएगी। हां, इसका खर्च काफ़ी मोटा होगा। भई, तभी तो पता चलेगा कि आप पैसे वाले हैं।
फिर इस तरह की इमारतों में काम करने वाले ज़्यादातर लोग IT कंपनियों में काम करते हैं। इनमें से ज़्यादातर को ऑफ़िस में ही अच्छा और मुफ़्त भोजन मिलता है।
वीकेंड पर आधे टाइम बाहर खाने या मंगाने का चलन रहता है, तो रसोई की जरूरत नाम भर के लिए ही होती है।
अब अगर आपको लग रहा हो कि ये किसी दूसरी दुनिया की बात है और हमारे-आपके समाज में ये चल नहीं पाएगा, तो बस कुछ साल इंतजार कीजिए।
दो पीढ़ी बाद के लोग कहेंगे कि हमारी दादी के समय पर तो रोज घर पर ही खाना बनता था। नए नए व्यंजनों से महकती रसोई की बात ही कुछ अलग होती है। तो इंतज़ार कीजिये जब अगली जेनरेशन के लिए ये बातें ताज्जुब से भरी हों।
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
Comments
Post a Comment