हरीड चाइल्ड सिंड्रोम Hurried Child Syndorme
हरीड चाइल्ड सिंड्रोम : ~~~~~~~~~~~~~~~
आजकल अभिभावकों और बच्चों के बीच एक नया शगल ट्रेंड कर रहा वो है "हरीड चाइल्ड सिंड्रोम"। इसे समझने के लिए सबसे पहले नए जमाने के नए चलन को अच्छी तरह से देखिए और महसूस कीजिये। कि आजकल छोटे से बच्चे से कितनी बड़ी बड़ी अपेक्षाएं लगा कर रखी जाती हैं। बचपन से उसे हर चीज़ हर काम में परफेक्ट होने की सीख दी जाने लगती है।
बच्चा जन्म के बाद अपने माहौल और परिवार से धीरे धीरे सब कुछ सीखता रहता है। लेकिन फ़िर भी सीखने और परफेक्ट होने में बहुत अंतर है। निरंतरता से ही perfection आती है। और ये निरंतरता कभी कभी जीवन भर चलती रहती है। कोई जन्म के 5-10 सालों के अंदर ही किसी को एकदम perfect कैसे बनाने की कोशिश कर सकता है ? ?
बच्चों पर ऐसी भूमिकाएं, जिम्मरियाँ या व्यवहार की अपेक्षा कर उसे अपनाने के लिए बाध्य करना जो बड़ों के लिए अपेक्षित हो यही "हरीड चाइल्ड सिंड्रोम" है। इसमें बच्चे से हर कार्य में सिर्फ उत्कृष्टता की अपेक्षा की जाती है। ये बच्चे के ऊपर अनावश्यक दबाव की तरह होता है।
इस दबाव से बच्चे के अंदर अक्सर आत्मविश्वास की कमी हो जाती है । वह गुमसुम रहने लगता है। वह बेवजह झल्लाने लगता है और हताशा उसे घेरने लगती है। उसमें असुरक्षा की भावना घेरने लगती है।जिससे वह अपनी भावनाएं साझा करने से डरने लगता है।
हर उम्र की एक अलग खासियत और सक्षमता होती है। उसी हिसाब से उसमें विकास आता है। बच्चों और बड़ों में एक जो मुख्य अंतर है वह परिपक्वता और अनुभव । और ये उम्र के साथ ही मिलता है।
आप कोशिश करके भी 8-10 साल के बच्चे को IAS नहीं बना सकते। हाँ उसे उस राह पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते है।पर ये प्रेरणा दबाव नहीं बननी चाहिए। बस उसकी ऊब ना बने वहीं तक उसे motivate किया जाए। तो ये हरीड चाइल्ड सिंड्रोम की स्थिति पैदा ही नहीं होगी।
★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★
Comments
Post a Comment