सत्य पर अडिग रहना,जीवन का सच
सत्य पर अडिग रहना, जीवन का सच : ***********************
जब हम सच के साथ चलते हैं तब हम अकेले होते हैं और हमारा सच भी। क्योंकि उसी समय हमारे इर्द गिर्द लोग और परिस्थितियाँ झूठ के बहुत से रूपों के साथ हमारे आगे पीछे मंडरा रही होती है। उनका बस एक मकसद होता है कि किसी तरह हमारे सच को गलत और उनके झूठ को सच और सही साबित कर दिया जाए। लेकिन समझने वाली बात ये है कि सच एक सामान्य घटना है.... जबकि झूठ एक प्रायोजित इवेंट है। जिसके लिए पूरी एक पृष्ठभूमि तैयार करनी पड़ती है। उसके लिए बकायदा उसके संवाद रटने पड़ते हैं। और उन संवादों को लंबे समय तक याद भी रखना पड़ सकता है। क्योंकि कभी भविष्य में जरूरत पड़ने पर वही कहा जाए जो पहले कहा गया था। ये जरूरी होता है। जबकि सत्य को याद रखने की जरूरत नहीं होती । वह देखे गए एक चलचित्र की तरह मनमस्तिष्क पर अंकित हो जाता है और समय आने पर हूबहू वैसे ही सामने आता है।
जिस तरह शरीर में रोम छिद्र होते हैं उसी तरह रिश्तों के भी नन्हें नन्हें छिद्र होते हैं जिन्हें समय समय पर भरते रहना आवश्यक होता है। आज कल लोग इन्हीं रिश्तों और समाज के बीच बन गए छिद्रों को झूठ और कुटिलता से भर रहे हैं। लेकिन वह ये भूल जाते हैं कि कुटिल निपुणता और झूठे अपनेपन से क्षणिक बेहतरी तो होगी। पर भविष्य में सत्य सामने आने पर रिश्ते में नन्हें छिद्रों की जगह दरार आना तय है। मानव स्मृति इतनी तीक्ष्ण नहीं कि बोले गए झूठ को आजन्म याद रख सके। इसलिए सत्य पर अडिग रहना ही जीवन मंत्र है जिससे स्वयं , रिश्ते और समाज सबके बीच सुंदर सामंजस्य बैठाया जा सकता है ।। ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
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