Doomscrolling का psycological impact

Doomscrolling का psychological impact ***********************

 घण्टों सोशल मीडिया पर यूँ ही स्क्रॉल करके कुछ कुछ अनुपयोगी देखते रहना ही doomscrolling कहलाता है। आजकल अधिकतर लोग इसके trap में फंस कर जीवन के महत्वपूर्ण समय को जाया कर रहे हैं। रील्स, शार्ट वीडियोस, मीम्स , इंस्टा वगैरह ने लोगों के सोचने समझने और कुछ कर पाने की ताकत हर ली है। क्योंकि जब अधिकतर समय अनर्गल देखने में जा रहा तो अपने दिमाग को कुछ creative सोचने का मौका ही नहीं मिल रहा। 

सामान्यतः doomscrolling की लत negetive content के लिए ज्यादा होती है। एक सर्वे के अनुसार लगभग 64% लोग doomscrolling पर अवांछनीय sites scroll करते हैं। निरंतर इसी तरह की स्क्रॉलिंग विचारों और भावनाओं पर विपरीत प्रभाव डालती है। मस्तिष्क नकारात्मकता के जाल में उलझ कर रह जाता है। ऐसे व्यक्ति संदेही, डरपोक और निरुत्साही हो जाते हैं। डॉक्टरों के अनुसार निरंतर डूमस्क्रॉलिंग से PTSD अर्थात post tromatic stress disoreder नाम की प्रॉब्लम व्यवहार में आने लगती है। जो कि आगे बढ़कर anxiety और depression में बदल सकती है। डूमस्क्रोलिंग से नर्वस सिस्टम भी प्रभावित होता है। मस्तिष्क में तनाव से सम्बंधित क्रियाएं होने लगती है। जो अमूमन डर में बदलती हैं। सांस तेज चलने, हृदय गति बढ़ना, रक्तचाप तेज होना,मांसपेशियों में तनाव आना जैसा बहुत कुछ होने लगता है। और कार्टिसोल नामक हार्मोन भी release होने लगता है जो सोचने समझने की क्षमता को खत्म करने लगता है। 

इसे रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदु :      

1. जिन साइट्स पर ज्यादा negativity हैं। उनसे दूर रहा जाए। 

2.फ़ोन इस्तेमाल करने की कुछ लिमिट सेट करें।

3. कुछ sites जो negative  हों उन्हें lock कर दें।

4.जब भी मन भटकने लगे तो कोई comic content देखना शुरू करें। हंसने से मन बहल जाएगा। 

5.दिन में एक बार खबरों की short news sites पर ज़रूर जाएं। updated रहेंगे। खबरें भी रुचिकर हो सकती है। 

6. मोबाइल पर अपने screen time की update देखतें रहें और कोशिश करके उसे रोज थोड़ा थोड़ा कम करें।

7.ये पूर्णतः समय की बर्बादी है जब ये सोच मन में बस जाएगी तो ये डूमस्क्रोलिंग भी बन्द होने लगेगी। इसलिए ये सोचिए कि इस से हमें हाँसिल क्या हो रहा है....? ? 

8. थोड़ा किताबों, अखबारों और संगीत में रुचि बढ़ाये। Radio पर FM चला कर रखें।सुनते भी रहेंगे। साथ में घर के या अन्य कोई काम भी हो सकते हैं। 

इस ओर ध्यान देकर ऐसी समस्या से बचा जा सकता है बस थोड़ा सा dedication चाहिए। सुधरने के लिए इच्छाशक्ति चाहिए जो अंदर से ही मिलेगी। 

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