शुद्धता के मायने
शुद्धता के मायने: 🙏 •••••••••••••••••••
शुद्धता को हम क्या समझते हैं उसे किस तरह अपने जीवन से जोड़ते हैं ये सोचनीय विषय है ...क्योंकि हम जीवन जीते जीते इस हद तक मिलावट स्वीकार करके अशुद्ध हो जाते है कि हम में originality रहती ही नहीं है । शुद्धता के लिए महान पुस्तकों में लिखा है कि जब कोई बाहरी तत्व मूल तत्व में आकर मिलता है तो उसकी शुद्धता खत्म हो जाती है। पानी शुद्ध हो और दूध भी शुद्ध लेकिन अगर दोनों को मिला दिया जाए तो वह अशुद्ध हो जाएंगे । क्योंकि दोनों में कुछ बाहर से आ कर मिलाया गया। बाहर की शुद्धता स्वच्छता कहलाती है और अंदर की शुद्धता पवित्रता। हम अंदरूनी तौर पर सिर्फ़ एक आत्मा रूप हैं जिसका परमात्मा से संपर्क सिर्फ अंदरूनी शुद्धता के आधार पर ही हो सकता है। कोरोना काल में जितना बाहर की शुद्धता पर ध्यान दिया जा रहा उतना ही अंतरात्मा की शुद्धता पर भी देना चाहिए। क्योंकि मन स्वस्थ तभी तन की स्वस्थता असर दिखाएगी। जब अंदर से खुश , संतुष्ट और स्वस्थ महसूस करेंगे तो बाहरी सावधानियां भी अपना प्रभाव दिखायेगीं । इस लिए जरूरी है कि अंदर की शुद्धता को भी उतनी ही अहमियत दी जाए। अंतर्मन की शुद्धता का एक दूसरा अर्थ ये भी होता है कि स्वयं को ठीक से जान लिया जाए। क्योंकि जब परमात्मा ने सबको बनाया है तो उसने वह तो फर्स्ट हैंड ही हुआ...जब हम उसके द्वारा बनाये गयर खुद को दूसरी चीजों से तराशते हैं तब हम अशुद्धता की ओर बढ़ते हैं।
जब खुद से खुद का परिचय हो जाये तो कोई बाहरी वस्तु स्वीकार करने से पहले रुचि , इच्छा या समसामयिक परिस्थितियां सब देखी जाएंगी। इससे अशुद्धता की गुंजाइश कम होती जाएगी। इस लिए शुद्ध बनने का प्रयास कीजिये। बाहर से कोरोना से बचने के लिए और अंदर से प्रभु से कनेक्शन के लिए। ★★★★★★★★★★★★★★★★★
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