छिछला ज्ञान और नकारात्मक जानकारी
छिछला ज्ञान और नकारात्मक जानकारी : ***********************
पोस्ट की शुरुआत एक सच्ची घटना से करूंगी। एक परिचित के घर जब भी जाओ उनके घर टीवी पर हमेशा ज़ी tv ही चलता हुआ मिलता था। वह बैठे हुए या लेटे हुए बस उसे ही सुनते रहते हैं और साथ ही अगर बंद करने को कह दो तो ये सुना देते कि आप क्यों रविश कुमार को सुनती हो.....!!
अब इस घटना के पीछे का सबक महसूस किया जाए। हम मां के पेट से अपनी सोच और व्यवहार अच्छा या बुरा लेकर पैदा नहीं होते। उसे बड़े होते हुए देखते और सीखते अपनाते हैं। आज जो हमारी उम्र तकरीबन 50 के आसपास या थोड़े कम ज्यादा के है।वो 2014 के बाद तो नहीं जन्में..... और 2014 के पहले जो निजी चैनलों पर सामान्य तरह की खबरें या दूरदर्शन के एक लीक पर चलने वाले सिर्फ समाचार ही तो सुनते होंगे। जिससे आसपास हो रही तमाम घटनाओं की बेसिक जानकारी मिल जाया करती थी।
फ़िर आज क्यों हमें इस तरह की खबरें देखने की लत लग गई जिसमें आरोप प्रत्यारोप , गाली गलौज , नीचा दिखाया जाना , सच को उसी के रूप में प्रस्तुत ना करना जैसी खबरें अच्छी लगने लगी हैं ? ?
इसका मुख्य कारण है हमारा छिछला ज्ञान। ना कि गोदी मीडिया द्वारा भरा जा रहा ज़हर....हम जानते बहुत कम है पर खुद हर क्षेत्र का ज्ञानी होने का दिखावा करने के लिए हमें रोजमर्रा की खबरें नहीं चाहिये । हमें चाहिए कुछ एक्स्ट्रा ...वह एक्स्ट्रा मनगढ़ंत हो , बढ़ा चढ़ा कर बताया जा रहा हो , ऊंच नीच की भावना से भरा हो तो भी चलेगा। क्योंकि रोज़ तो सामान्य चर्चा से अपनी साख नहीं बनाई जा सकती ।
ये चलन कम हो सकता है अगर हम पढ़ना शुरू कर दें। किताबें , वीडियोस जो हमें भूत और वर्तमान दोनों से जोड़ें। जब पढ़ेंगे तो सत्य जानते हुए तुलना करना आएगा। और जब हम तुलनात्मक हो जाएंगे। तब सही गलत की पहचान करने लगेंगे।
अब ये भी प्रश्न उठेगा कि कुछ किताबें या वीडियोस भी तो बुरे होएंगे ....क्या उनको पढ़ कर पुनः दिमाग नहीं खराब होगा ? ? इसका हल आपके निरंतर पढ़ते रहने में ही छिपा है। आजकल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी यही तो कर रही। दिग्भ्रमित करने का काम...और वो सफल इसलिए हो रही कि लोग पिछला ना तो जानते है ना ही समझने में रुचि रखते हैं। अगर हम पढ़ते रहेंगे तो हमें जानकारियों के लिए tv चैनलों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
अब इस मुद्दे से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण बात...हमें लत क्यों लग गई ? ? इसका भी उत्तर हमारे ज्ञान से ही जुड़ा है। ड्रग्स या शराब की लत लगती है। इंसान वशीभूत होकर ले लेता है। पर जब पुनः होश में आता है। तब उसे लेने के लिए खुद को कोसता है। वह समझता है कि वह इन्हें उपभोग करके अपना और अपने परिवार का नुकसान कर रहा। तो यही मूल मंत्र है कि अपने ज्ञान और उससे जुड़ी आस्था को इस कदर मजबूत करो कि लत लगे ही नहीं...ज्ञान चाहे अच्छा हो या बुरा अपने अस्तित्व की समझ तो कराता ही है ।
इसलिए आज फैले हुए इस घृणित जाल से निकलने का सबसे बेहतर माध्यम है पढ़ना और अपने ज्ञान का विस्तार करना। एक समय बाद समझ खुद अच्छे को छलनी से छान कर मस्तिष्क में रख लेगी और बुरे को फेंक देगी।
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