Shopping with AI assistant

 Shopping with AI assistant......              ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ईश्वर ने मानव को एक दिमाग दिया। ताकि वह अपने सभी कार्य सोच समझकर अपनी काबिलियत से कर सके। ऐसा करते रहने से मानव मस्तिष्क और परिपक्व होता है। निरंतर सीखते और समझते रहने से उसके अंदर मजबूती आती है। एक बार में कोई भी perfect नहीं बन पाता। इसलिए ये सीखने की प्रक्रिया जीवन भर निरंतर चलती रहनी चाहिए। 

पर जब से विकास की अंधी दौड़ में कंप्यूटर AI वगैरह जैसी चीजें चलन में आई हैं। लोगों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल बन्द कर दिया और वो पूरी तरह टेक्नोलॉजी पर निर्भर हो गए हैं। 

पहले घर की जरूरतों के हिसाब से लिस्ट बनाई जाती थी। बाजार जाकर उन चीजों के दाम, क्वालिटी सब देखे जाते थे। फिर तय किया जाता था कि कौन सा लेना है, कब लेना है। 

अब एक नया चलन बाजार में आया है। एक AI असिस्टेंट Buy with pro जैसे shopping एजेंट को लांच किया है। जो आपकी list making, purchasing, और market survey में help करेगा। आप बस किसी एक जरूरत का नाम लिख दो। बाजार में उपलब्ध वो उसके सारे विकल्पों को क़ीमत और गुणवत्ता के साथ तुलनात्मक रूप से सामने रख देगा। और अगर आप उसे कहो तो वो ऑनलाइन order भी कर देगा। 

मतलब आप हिलो मत,कोई दूसरा आपके सब काम कर दे। जंग लगने दो शरीर को, दिमाग को,उत्साह को,फुर्ती को और रगों में दौड़ते खून को। क्योंकि जब अपनी जगह से उठना ही नहीं है। बैठे बैठे बस order चलाकर सब करवाना है तो जड़ ही बनते जाओगे। 

खुद बाहर निकलने और खरीदारी करने के फायदे गिनो...

1.दस चीजें देखना समझना चुनना और तय करना ये अनुभव बढ़ाता है। 

2.बिना छुए बहुत सी चीजों का आंकलन नहीं हो पाता। हम औरतें चार पांच तरह के चावल हाथ में लेकर देखती है। फिर चुनती है। 

3.दाम के साथ साथ चीज़ की गुणवत्ता भी देख कर ज्यादा अच्छे से आंकी जा सकती है।

4. नजदीकी किराने की दुकान से सामान खरीदना व्यवसायी के लिए भी अच्छा है और हमारे लिए भी। 

5. लोकल खरीदारी से दुकानदार परिचित से बन जाते है। समान देते समय वह गुणवत्ता का ध्यान रखते हैं। अगर कोई चीज़ पसन्द ना आये तो बदली भी जा सकती है। 

6. बाहर निकलने पर बाजार का पता चलता है। बहुत सी दूसरी जरूरत की चीजें कहाँ मिलेगी, कितने में मिलेंगी ये सब जानकारी होती है। 

7. ऑनलाइन आप सिर्फ ब्रांडेड सामान मंगवा सकते हो। पर खुला किराना बाजार घूमने व लोकल खरीदारी से ही मिलेगा। 

8. लोकल खरीदारी online से सस्ती पड़ती है। 

9. बाजार घूमना, चीजों को explore करना ये भी रख तरह की मस्ती और वर्जिश है। 

10.और सबसे महत्वपूर्ण बात की हमें हमारी पसन्द को एक AI agent कैसे और क्यों समझ सकता है...क्या अपने बच्चे की जरूरत जिस तरह मां बाप समझ लेते हैं उसी तरह वह भी हमें समझ पायेगा। ये फिर हम जो उसे instruct करेंगे वह उसी हिसाब से डाटा प्रस्तुत कर देगा .... 

यकीनन वह डाटा आपको अच्छा लगेगा। क्योंकि आपने जो requirements feed की हैं वो उसी हिसाब से results दिखा रहा। 

मेरी बेटी को ठंड के लिए jackets लेनी थी। online search कर रही थी। जोधपुर में गर्मी ज्यादा पड़ती हैं तो मैनें कहा कि लो मगर बहुत मोटी और भारी मत लो। हल्की लो। जो कम से कम तीन चार महीने पहनने में आये। भारी तो बस दिसंबर जनवरी में ही पहनी जा सकती है। 

बस यही अंतर समझना जरूरी है कि खुद की सोच,आर्थिक सीमा,सामाजिक परिवेश,भौगोलिक स्थिति सब हमारी खरीदारी को प्रभावित करती है। उसे हम हमारे परिवार और लोकल बाजार अच्छे से समझता है। 

इसलिए बाहर निकलिए, नया explore  कीजिये, बैठे बैठे शरीर को जंग मत लगने दीजिए, दिमाग को भी थोड़ी मेहनत करने दीजिए। बाज़ार आपके लिए ही है। बस ढूंढने की वर्जिश शरीर के लिए भी जरूरी है। 

★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★◆★

Comments