अव्यक्त चुप्पी तोड़ बोल भी दो

 अव्यक्त चुप्पी तोड़ बोल भी दो : ••••••••••••••••••••••••••••



जरूरी तो नहीं कि चुप्पी हर बार अच्छी ही हो। कभी कभी खुल कर बोल देना भी ज़रूरी होता है। हालांकि ये कहा जाता है कि अधिक बोलना अच्छा नहीं होता। पर अव्यक्त मुद्दें कभी कभी उलझाव पैदा करते हैं। क्योंकि किसी भी मुद्दें को हर व्यक्ति अपने नज़रिए से देखता है। और ये जरूरी नहीं कि वह जो नज़रिया अपना रहा वह सही हो। 

क्या जरूरी है कि किसी भी बात का चुप्पी से जवाब दिया जाए। कुछ बातें कह सुन कर ही सुलझाई जा सकती हैं। चुप्पी वहम और संशय पैदा करती है जबकि बोलचाल पारदर्शिता लाता है। हम क्यों बहुत सी बातों को मन में दबा कर यूँ ही घुटते रहें। बोलकर जी हल्का करें और स्थिति को साफ करें। अनुमान लगाने की वजह ना पैदा करें। 

इसलिए हर जगह चुप्पी अच्छी नहीं। खुद को व्यक्त करने की भी ललक मन में रखी जाए। 

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