आक्रामकता छोड़ धैर्य अपनाइए
आक्रामकता छोड़ धैर्य अपनाइए ************************
विकास की अंधी दौड़ में हमने जो सबसे अहम चीज़ खोई है वो है अपना धैर्य और सहनशीलता। किसी भी बात या परिस्थितियों पर आक्रामक हो जाना चलन सा बन गया है। कभी कभी लोग आक्रमक होकर खुद को superior भी दिखाने की कोशिश करते है। उनका मत होता है कि बात अगर softly और politely कही जाएगी तो उसमें वजन कम होगा और सामने वाला उस ओर ध्यान नहीं देगा। देख लें चाहें सड़क हो मॉल हो, सिनेमाघर हो, रिफ्रेशमेंट काउंटर्स हो या कहीं भी जहां क्यू की व्यवस्था हो वहां जल्दीबाजी और आक्रमकता ज़रूर होगी। खुद को सबसे आगे रखने के लिए। जेहन से ठंडक तो जैसे गायब ही हो गई। प्रतिक्रिया और क्रोध भी आदत बनता जा रहा। स्वभाव धीरे धीरे उग्रता धारण कर रहा।
इसे बदलने के लिए कुछ नुस्खे आजमाए जा सकते हैं।
1.हर कोई किसी ना किसी धर्म को तो मानता ही है। सुबह सबसे पहले अपने धर्म का एक मीठा भजन सुनिए। मन की सबसे पहली खुराक शांति होगी।
2. दिन चढ़ने पर जब आप काम में व्यस्त होए तो कोई पुराना संगीत बजाएं। कोई गाना कोई music piece या कोई ऐसी धुन जो मदहोश सी कर सके।
3.प्रकृति को अपने आसपास रखें। बन्द कमरे में भी हरीतिमा को साथ रखा जा सकता है। पौधे को छूएं। उसकी सहजता महसूस करें। प्रतिकूलता के बावजूद उसमें कितना जीवन है इसे अपने अंदर उतारें।
4. छोटे बच्चों के साथ वक्त गुजारें कोशिश करके उनके साथ खुद भी बच्चे बन जाएं। बचपना करें जो कि senseless हो। पर जिससे खुशी मिले।
5. जिस चीज़ में रुचि हो उसे करें। उसने दिल लगाए। creativity बहुत सुकूँ और शांति देती है। साथ ही पूरी होने पर खुशी भी।
भावनात्मक रूप से मजबूत होने पर क्षणिक आक्रामकता की आदत छूटेगी और विचारों में स्थिरता आएगी।
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