और कितना विकास चाहिए
और कितना विकास चाहिए : *********************
हम आगे बढ़ने और मॉडर्न होने के बहुत सारे तरीके सीख रहे आजमा रहे और उन्हें आदत बना रहे। पर उनमें से क्या अच्छा क्या बुरा है ये कभी नहीं सोचते। अपनाते इसलिए हैं कि वही चलन में है। अगर वही सब करोगे तो ही अपने समाज में तुम्हें स्मार्ट समझा जाएगा। वरना गंवार बन कर रह जाओगे।
जो ये घटना के बारे में चर्चा की जानी है उसे जानकर सभी को दुःख होगा पर ये सत्य है और हुआ है। गुजरात के वलसाड जिले में मात्र नौ माह में 12 से 16 साल की दो हज़ार से ऊपर बच्चियां मां बन गयी। जो उम्र खुद खेलने और कूदने की है उस उम्र में वो गर्भवती हो रहीं, प्रसवपीड़ा सह रहीं और फ़िर बच्चे पाल रही। कोई समझ सकता है उनकी वेदना....खेलने कूदने की उम्र में बच्चा संभालना , स्तनपान कराना और अपनी जिंदगी के उत्साह को खत्म कर देना क्या अच्छा लगता होगा उन्हें ? ?
★ अब पहला सवाल ये की कोई तो युवक होंगे जिन्होंने इन्हें मां बनाने की स्थिति में पहुंचाया...!!
★ दूसरा सवाल कि शारिरिक परिवर्तन की स्थिति क्या बच्चियों को बच्चे को जन्म देने से पहले समझ नहीं आई...!!
★ तीसरा सवाल कि वह आदिवासी समाज की बच्चियां हैं तो उनका समाज भी बिना विवाह के पुरूष के साथ संबंध रखने पर क्यों नहीं रोकता...!!
★ चौथा महत्वपूर्ण सवाल कि बच्चे के जन्म के बाद सिर्फ उस लड़की को ही क्यों पालनपोषण का भार सहना पड़े, अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़े, प्रसव पीड़ा सहनी पड़े, शारिरिक दर्द सहना पड़े। जबकि जिम्मेदार पुरुष का इससे कोई लेना देना नहीं...!!
ये सब का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण व्यस्क videos हैं जिसे देखकर बच्चे समय से पहले बड़े हो रहे हैं। और ये आंकड़े तो जो पता चल पाए। नहीं तो गांवों में अभी भी प्रसव घरों में ही हो जाते हैं। जिससे प्रसव के आंकड़े , गर्भपात, प्रसूता की मौत जैसी घटनाएं दब कर रह जाती है। अंदाजा लगाइए की 12 साल की छोटी बच्ची क्या बच्चा पालेगी। उसके शरीर में दम कितना है कि वह बच्चे को स्तनपान कराएगी...ये सब सवाल वाजिब है पर इसका जवाब समाज के पास नहीं है क्योंकि एक तरफ तो वो मॉडर्न बनना चाहता है दूसरी ओर वह अपनी पुरानी रूढ़ियों को भी साथ लेकर चलना चाहता है। इन रूढ़ियों को कारगर करने में इंटरनेट मदद करता है।
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