थोड़ी अजीब सी हूँ मैं
थोड़ी अजीब सी हूँ मैं : ••••••••••••••••••••••
बिन कहे सब कुछ कहती हूँ बिन सुने बहुत कुछ समझती हूं थोड़ी अजीब सी हूँ मैं कि हर घड़ी अपनी बात नहीं बदलती हूँ.... कभी एक चट्टान की तरह मजबूत हूँ कभी सागर की रेत सी ढलती हूँ थोड़ी अजीब सी हूँ मैं कि फ़िर भी ज़मी से जुड़कर रहती हूं.... कभी बादलों की गरज से डरती हूँ कभी बारिश का इंतेज़ार करती हूँ थोड़ी अजीब सी हूँ मैं कि जो सताए उसी को प्यार करती हूं कभी ठीक ना भी होऊँ तो बिल्कुल ठीक होने का दावा करती हूं थोड़ी अजीब सी हूँ मैं कि लोग मुझे कितना समझते है ये परखती हूँ नरम दिल के साथ ही जुबाँ में भी पारदर्शीता रखती हूं थोड़ी अजीब सी हूँ मैं कि दो चेहरे होने का मतलब नहीं समझती हूं इंद्रधनुषी होने की चाह में सभी रंग से खुद को संवारती हूँ थोड़ी अजीब सी हूँ मैं कि श्वेत श्याम व्यक्तित्व की ज़रूरत नकारती हूँ ~ जया सिंह ~
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