दूर सही पर फ़िक्र में हैं
दूर सही पर फ़िक्र में हैं .....!! ••••••••••••••••••••••••••••
हम दूर ही सही, पर फ़िक्र में है
मन की कही हुई के ज़िक्र में हैं
इक लम्बे अरसे से जो अपना मिलना नहीं हुआ
ये कैसे कहें यादों का मन में मचलना नहीं हुआ
गर कोई बात थी या कोई मसला
उसने जिंदगी का रूख़ क्यों बदला
चंद कदमों की दूरियां देखो बरस बनकर गुज़र गईं
क्या कभी इन दूरियों की पीड़ा पर तेरी नज़र गई
सभी लोग अपनी दुनिया में मशगूल हैं
हम सबके लिए जिये ये हमारी भूल है
चाहते थे अच्छा करना पर कुछ और ही हो गया
जो स्नेह का बंधन बंधा हुआ था वो कहीं खो गया
अब तो मेरी उम्मीद भी हार मान गई
तेरी जिंदगी में अपनी जगह पहचान गई
चलो ख़ुश रहते है जहां भी तुम हो जहां भी हम हैं
बस मन की दूरियां कम नहीं हुई यही एक ग़म है
~ जया सिंह ~
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