अधर्म का बोलबाला, धर्म का दिखावा

अधर्म का बोलबाला, धर्म का दिखावा : •••••••••••••••••• ••••••••••••••

भले ही दुनियाभर में नास्तिकों की संख्या बढ़ रही हो पर फिर भी आस्तिकों की संख्या उनसे ज्यादा ही है। आस्तिकता कोई बुरी चीज़ नहीं है बल्कि यदि लोग धर्म के पीछे के उद्देश्य को वास्तविकता में समझ पाते तो मानव समाज एक बेहतर समाज बन सकता था। परंतु सदियों से एक के बाद एक धर्मगुरु, अवतार, पैगम्बर आते रहे पर इंसान नहीं बदल सका। हर कोई अपने अपने धर्म को महान बताता है पर ये महानता का दावा भी अपनी श्रेष्ठता थोपने की एक नाकाम कोशिश मात्र है। ईमानदारी  से देखें तो किसी को भी अपने धर्म और उसकी बातों पर रत्तीभर भी यकीन नहीं है।

हिन्दू धर्म बसुधैव कुटुम्बकम की बात करता है। हिन्दू धर्म की पुस्तक गीता में कई महान बातें कही गयी हैं। गीता पर हर हिन्दू श्रद्धा रखता है और गीता से लेकर वेद, उपनिषद भी कहते हैं कि हर प्राणी में एक ही जीवात्मा है। जब सबमें एक ही ईश्वर का अंश यह तो कोई इंसान कैसे पूजनीय बन गया और कैसे दूसरा गंदे कीड़ों से भी ज्यादा घृणित बन गया? जब सभी एक ही ईश्वर के अंश हैं तो कैसे हिन्दू खुद को ब्राह्मण, क्षत्रिय कहकर गर्व कर सकता है? कैसे वो किसी को अछूत घोषित कर उसके साथ अमानवीय व्यवहार कर सकता है?

सभी हिन्दू ग्रंथ कहते हैं कि पुनर्जन्म होता है और जीवात्मा कर्म के अनुसार अगला जन्म लेती है। यदि हिंदुओं को इस बात पर रत्तीभर भी यकीन होता तो वे कभी भी वर्ण व्यवस्था का समर्थन कर ही नहीं सकते थे। वे कभी भी जाति के आधार पर बंट ही नहीं सकते थे क्योंकि हर आत्मा के ब्राह्मण से लेकर चांडाल तक जन्म लेने की संभावना रहती। यदि हिन्दू अपने धर्म पर श्रद्धा रखते और जरा भी बुद्धिमान होते तो कभी भी वे किसी को वर्ण व्यवस्था और उससे उपजी जाति प्रथा के कारण अछूत और निम्न घोषित नहीं कर सकते थे। 

अगर हिन्दू अपने धर्म पर यकीन करते और उनको कर्मवाद पर यकीन होता तो कभी भी वे कोई भी दुष्कर्म करने की सोच ही न पाते। वे किसी भी स्त्री या कमजोर का उपहास न करते, न उनका शोषण करते क्योंकि ऐसा होने पर अगले जन्म में उसका फल भोगना पड़ता ये विश्वास उनके अंदर होता। पर उनको अपने धर्म पर यकीन ही नहीं है। इसीलिए वो हर तरह का पाप कर्म कर पाते हैं।

इस्लाम कहता है कि अल्लाह की मर्जी के बगैर एक भी पत्ता नहीं हिल सकता है। इस्लाम के हिसाब से अल्लाह कुछ भी कर सकता है। अगर मुसलमानों को अल्लाह पर यकीन होता तो कभी भी वे ईशनिंदा के नामपर किसी का खून नहीं बहा सकते थे और न ही झूठ, छल, कपट करके अपने मज़हब का विस्तार करने की कोशिश करते। पर उनको यकीन नहीं है इसलिए वो हर तरह की मक्कारी आसानी से कर पाते हैं। अगर उनको अपने मज़हब पर यकीन होता तो वे कभी भी मानव बम नहीं बन सकते थे।

अगर बौद्ध धर्मावलंबियों व जैनों को अपने धर्म पर यकीन होता तो वे कभी भी बुद्ध व महावीर को न पूजते। न धन के पीछे पागल होते और न ही अपने धर्म के लिए कट्टर। वे करुणामयी होते और आत्मकेंद्रित न होकर इंसानियत की भलाई का कार्य करते। यही हाल ईसाइयों के है। अगर उनको ईसा पर यकीन होता तो उनके दया, करुणा जैसे उपदेशों पर भी होता। पर वे भी ऐन केन प्रकारेण केवल और केवल अज्ञानियों की ही संख्या बढ़ा रहे हैं।

हर धर्म के सिद्धांतों और उनके मानने वालों के आचरण में विरोधाभास होता है। अगर उनको वास्तव में अच्छाई पर यकीन होता और वे धर्म को अच्छाई का माध्यम मानते तो कभी भी कुकर्मी न बनते। पर धार्मिक होने का दिखावा करने वाले ही वास्तविकता में भयंकर दुष्ट सिद्ध होते हैं। वे किसी भी तरह का कुकर्म करने पर डरते नहीं हैं। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि इस दुनिया में हर कोई धार्मिक होने का दिखावा भर करता है पर उसको अपने धर्म पर, उसके डॉक्ट्रिन पर लेशमात्र भी विश्वास नहीं है। ईश्वर अल्लाह के नामपर गुंडागर्दी करना यही दर्शाता है कि उसे ईश्वर अल्लाह के सर्वशक्तिमान होने पर जरा भी विश्वास नहीं है और वो ईश्वर अल्लाह को केवल अपने फायदे तथा अहंकार की तुष्टि के लिए इस्तेमाल करता है। इसका मतलब वो ये सब धार्मिकता का ढोंग केवल दिखावे के लिए करता है और समाज में एक रुतबा पाने के लिए खुद को धार्मिक जताता है ताकि बाकी उसपर यकीन कर लें और वो इसी बहाने अपना स्वार्थ सिद्ध कर लें। यही कारण है कि दुनिया में इतने सारे धर्म होने और धार्मिक जनता के होने के बाद भी अधर्म का ही बोलबाला है।

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