असहजता से परिपक्वता
असहजता से परिपक्वता : ~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सबकी सोच और मान्यताएं अलग अलग होती है ये परिवार पर,व्यक्तिगत व्यवहार पर और परवरिश पर निर्भर करता है। कोई भी व्यक्ति उसी तरह पनपता और सँवरता है जिस तरह उसको माहौल मिलता है। सहज होकर रहना हर किसी की चाहत होती है। और ये सहजता माहौल में रच बस कर ही मिलती है।
पर क्या कभी ये सोचा गया कि सहजता एक प्रकार की स्थिरता देती है। मतलब जिस स्थिति में सुकून महसूस होए। बदलाव ना होए। जिसकी आदत पड़ी हुई है, वहीं हम सहज रहेंगे।
लेकिन इसके विपरीत अगर खुद को तराशना है। हर परिस्थिति में खुद को मजबूत बनाना है । तो सबसे पहले असहजता का सामना करना सीखना होगा। क्योंकि असहजता अनुभव और कार्यशैली निखारती है। सीखा- सिखाया हुआ तो सभी अच्छे से कर लेते हैं।पर नई चीज का सामना करने पर उसे स्वीकार कर उसके साथ तारतम्य बिठाना और उसके अनुरूप कार्य करना या रहना ही असहजता है।
जब तक अपनी लीक पर चलकर खुद को असहज नहीं बनाया जाएगा। तब तक वो जुझारूपन नहीं जन्म लेगा जो उस स्थिति का सामना करने को उकसाएगा। असहजता हमें मजबूत बनाती है।
हम रोज एक ही जैसे कपड़ें पहनें तो क्या ऊब सी नहीं होने लगेगी। इसीलिए रोज बदलाव करके कुछ नया पहनते हैं ताकि एकरूपता से बचे। यही बात असहजता पर लागू होती है। नियमितता से निकलने के लिए कभी कभी असहजता अपनानी ही पड़ती है। ये हमें नए अनुभव के साथ परिपक्व बनाने में मदद करती है।
नई पीढ़ी इसे comfort zone कहती है। जो मनचाहा होता है और जो एक ऐसा खोल है जिसमें सुकून और सुरक्षित महसूस होता है। जिससे बाहर निकल कर ही दुनिया के नए अनुभवों और विकास को अपना सकेंगे।
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