सफल नेतृत्व का मूल मंत्र

 सफल नेतृत्व का मूलमंत्र :      ••••••••••••••••••••••••••

सफ़ल नेतृत्व के उदाहरण के रूप में यदि राम और रावण के बीच के युद्ध का आंकलन किया जाए तो आसानी से समझा जा सकता है कि समूह को उसकी पूर्ण क्षमता से दोहन करने से परिणाम कैसे अपने पक्ष में किया जा सकता है। रावण का ज्ञान उसके अभिमान के आगे कहीं दीन हीन पड़ गया और इसी अभिमान के चलते उसकी हार हुई। 
                जबकि राम शक्ति संपन्न होते हुए भी छोटों को मान सम्मान और उनकी विशेषताओं के साथ स्वीकार करते थे। जिससे वो व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण योग्यताओं के साथ राम का साथ देता और उन्हें मजबूत बनाता था। रामायण के बहुत से पात्र जैसे  विभीषण , सुग्रीव , बाली , जटायु , शबरी  , नल- नील और सबसे बड़े हनुमान जी ....यह सभी भिन्न भिन्न योग्यताओं से परिपूर्ण थे। हर किसी के पास एक अलग शक्ति थी। और  त्रासदी ये थी कि उनकी शक्ति को उन्हें किस तरह अपने पक्ष में प्रयोग करना है ये उन्हें पता नहीं था। ये राम जी ने परखा और समझा । तभी उन्होंने सभी को उनकी सम्पूर्ण शक्ति और योग्यता के साथ उनका दोहन किया। 
                   यूँ तो रावण स्वयं भी बहुत सी शक्तियों से परिपूर्ण था। उसे शिव वरदान भी प्राप्त था। पर संसार का नियम है कि जिसका कार्य उसी को साझे। अर्थात हर कार्य के लिए किसी की खास योग्यता ही आवश्यक होती है। रावण तो लंका के राजा थे। राजा सदैव अपने अधीनस्थ लोगों से मिलकर ही राज्य चला सकता है। ऐसे में सबको सम्मान देना और लेना, सबके मत को सुनना और महत्व देना, उनकी क्षमताओं को उनकी उच्चता से आंकना जैसे कार्य अगर कोई राजा कर ले तो वह अपनी अधीनस्थ कार्यकर्ता और प्रजा का बेहतरीन उपयोग कर सकता है।
               बस यही एक सफल नेतृत्व का मूल मंत्र है। ख़ुद पर भरोसे के साथ अपनी team पर भी भरोसा किया जाना चाहिए। हर कोई एक खास योग्यता से परिपूर्ण होता है उसे परख कर उसी अनुसार उसे कार्य सौंपा जाए। 
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