Sociotropy जगत खुशी ही आत्म ख़ुशी
Sociotropy, जगत ख़ुशी ही आत्म खुशी...! •••••••••••••••••••••••••••••
पहले के जमाने में जगत मामा, जगत फूफा या जगत काका हुआ करते थे। जो गांव में कहीं भी कोई भी आयोजन हो तो वह उसमें मुख्य कर्ताधर्ता के रूप में शामिल होते हैं। क्योंकि उनका व्यक्तित्व और चरित्र अतिविश्वासी हुआ करता था और सबसे बड़ी बात सुख दुःख में पूरा गांव समाज एक साथ खड़ा रहता था। सभी एक दूसरे का सहयोग करते हुए अपना अपना योगदान देने में यकीन रखते थे। गांव से जब कोई यात्रा पर जाता था तब पूरा गांव उसके लिए तैयारी करता था। यहां तक कि लोग साथ जाते या उनको गंतव्य तक सुरक्षित छोड़ते। उस समय सोशियोट्रोपी या सामाजिकता को इस नज़र से देखते थे कि "लोग क्या कहेंगे" । आज अपने माँ बाप क्या कह रहे उसको ही इज्ज़त नहीं दी जाती तो अन्य लोगों की राय को क्या value किया जाएगा ..? ?
पर अब ये चलन खत्म सा ही हो गया। जगत मामा काका या चाचा की जगह केटरिंग और वेडिंग प्लानर वालों ने ले ली है और वो जो भी करते है दिए जा रहे पैसे के हिसाब से तोल मोल कर करेंगे। जबकि निःस्वार्थी होकर जो आसपड़ोस के लोग करते थे। उनमें उनका अपनापन छुपा होता था। दूसरों की खुशी में अपनी ख़ुशी ढूंढ लेने या भूल जाने को ही sociotropy कहते हैं। दूसरों की राय की value होने की वजह से ही सामाजिकता का महत्व अधिक हो जाता था।
Sociotropy एक खास तरह का व्यवहारिक गुण है जिसका अध्ययन सामाजिक मनोवैज्ञानिक में किया जाता है। जिसमें एक व्यक्ति अपने आसपास के तमाम लोगों को खुश करने, रखने का जतन करते रहते हैं। इसमें पारस्परिक संबंद्धों को बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है। इस तरह के व्यक्तियों को लोगों को खुश रखने वाले की पहचान दी जाती है।
सोशियोट्रोपी इसलिए खत्म हो गई की गगनचुंबी इमारतों में सटे हुए घरों में रहने के बावजूद बगल के घर में कौन रह रहा यही तक ठीक से पता नहीं होता। न्यूक्लियर फैमिली का होना भी इस सोशियोट्रोपी के खत्म होने का एक महत्वपूर्ण कारण है। संयुक्त परिवार में सबकी खुशी को तवज्जो दी जाती है। परंतु एकल परिवार में सिर्फ़ अपने बारे में सोचा जाता है।
कुछ पुरानी परंपराएं कितनी अच्छी थी आज जब उन्हें खो रहे तब उनकी कीमत समझ आती है। इस व्यवहारिकता का खत्म होने का नकारात्मक प्रभाव भी साफ दिखाई दे रहा है। व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता जा रहा और ये सुखी रहने पर तो ज्यादा महसूस नहीं होता क्योंकि उस समय मन अच्छा होता है । पर जब दुःखी हो या विपरीत परिस्थितियां हों तो अपनों की कमी महसूस होती है। तब याद आता है कि सोशियोट्रोपी होती तो बहुत से लोग आसपास खड़े होते।
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