माइक्रो रिटायरमेंट

 माइक्रो रिटायरमेंट :         ●●●●●●●●●●●

ये एक नया concept है जिसे आजकल के जेन-जी, अर्थात 1996 से 2012 तक जन्में लोग अपनाने की कोशिश कर रहे। अच्छा है क्योंकि खुद के लिए, खुद के साथ और खुद की खुशी को मायने देने के लिए समय तो अलग से ही निकालना पड़ेगा। 

माइक्रो रिटायरमेंट एक ऐसा ट्रेंड है जिसे आजकल की नई पीढ़ी आजमा रही। जिसमें युवा कर्मचारी काम से छः माह से लेकर साल या दो साल तक का ब्रेक लेते हैं। इस ब्रेक के दौरान वो अपनी मेन्टल हेल्थ, ट्रैवेल, कैरियर, निजी रिश्तों और खुद पर ध्यान दे रहे। युवावस्था का पूरा ऊर्जावान समय सिर्फ पैसा कमाने के लिए नहीं बल्कि अच्छे स्वास्थ्य और ऊर्जा के साथ अपने शौक पुरे करने के लिए उपयोग करना चाहिए। 

ये एक स्ट्रेटेजिक ब्रेक की तरह है। जो एक नए सिरे से रिचार्ज करने, लक्ष्यों पर ध्यान देने और नए दृष्टिकोण पर विचार करने के लिए जरूरी समझा जा रहा। सामान्यतः work place का burn out बहुत stress देता है। ये उत्पादकता पर भी असर डालता है। और काम में फंसकर या डूबकर अक्सर लोग अपने लिए जीना ही भूल जाते हैं और बाद में पछताते है।

काम से रिटायर्ड मतलब 60 से ऊपर की उम्र। तीन हिस्सा जिंदगी का यूँ ही गुजर जाता है। काम करता हुआ इंसान एकदम से खाली हो जाता है। पर उस खाली समय को बेहतरी से गुजारने के लिए शरीर साथ नहीं देता। उधर जब तक रिटायर ना हो रोज रूटीन से उसी काम पर जाओ। उसी के अनुसार जिंदगी की व्यवस्था बिठाओ। सुबह का नाश्ता, खाना, घूमना फिरना, मिलना जुलना सब उस नौकरी और कामकाज के हिसाब से तय होता है। अपने लिए ख़ास समय निकालना मुश्किल होता है। ना ही कुछ नया सोचने करने और करने के लिए होता है। 

हम सब ने आधी से ज्यादा जिंदगी नौकरी बच्चों की परवरिश में खपा दी। अब जब above 55 हो गए तब सोचते हैं कि जब शरीर में हिम्मत, ताकत और इच्छा थे तब तो कहीं निकले नहीं। बस एक ही जगह एक ही रूटीन follow करते करते जिंदगी के 55- 60 साल खत्म कर दिए। अपबे लिए जीते कहाँ... ? ? इसलिए नई पीढ़ी की इस सोच को सलाम। बहुत अच्छी सोच है। अगर वो इसे अपना रहे तो एक अच्छी पहल है। जिसे हम करने से चूक गए।...!!

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