शिक्षा का महत्व
शिक्षा का महत्व : ••••••••••••••••••
जब भी आपके हाथों में किताब आएगी, तब मन से भ्रांतियां दूर रहेंगी और जब भ्रांतियां दूर रहेंगी तब विज़न क्लियर होगा। शिक्षा सदैव ही हिंसा, अराजकता, बहकावे के विपरीत खड़ी रहती है। पर आज समाज या देश मे जो भी हिंसा या अराजकता का माहौल नजर आता है वो निःसंदेह शिक्षा की कमी से है।
एक शिक्षित इंसान सबसे पहले कुछ अवांछित करने से पहले उसके भावी दुष्परिणाम को सोचेगा। हिंसा या अराजकता में स्वयं की हानि का आंकलन करेगा। इसलिए वह सदैव हिंसा से बचने और बचाने की बात को प्राथमिकता देगा। ज्यादातर आपराधिक मामलों में शामिल लोगों की शिक्षा स्तर देख कर समझा जाये कि वह या तो सिर्फ साक्षर मात्र हैं या बेहद कम पढ़े लिखे। शिक्षा समझदारी का वह द्वार खोलती है जिससे इंसान गलत सही का फ़र्क़ पहचानने लगता है।
पर आजकल अमूमन छोटे तबके में देखा जा रहा कि बच्चे शिक्षा को तवज्जो देना ही नहीं चाह रहे। उन्माद के चलते उनके लिए स्कूल छोड़ कर विभिन्न धर्मिक सामाजिक रैलियों में शामिल होना, दस-दस दिन का गणपति और नवदुर्गा का पंडाल सजाना, किसी की जयंती या दिवस के लिए आयोजन करना जैसे कृत्य महत्वपूर्ण हो गए। जबकि ये सब उनकी उम्र के लिए कत्तई ठीक नहीं। राजनीति भी ऐसे छोटे बच्चों और युवाओं को कुछ पैसे देकर भीड़ बढ़ाने और उनकी सोच को बन्धुआ बनाने का काम बखूबी कर रही। जो बच्चे आज किताब और कलम पकड़ कर कुछ बेहतरीन कर सकते हैं। उन्हें रैलियों में आगे आगे फूहड़ गानों पर नचवा कर उनका भविष्य खत्म किया जा रहा है।
आजकल बच्चे भी जैसे ही थोड़े बड़े होते हैं नए नए शौक पूरे करने की चाह में पढ़ाई छोड़ कर छोटेमोटे काम पर लग जाते हैं। पर वह ये नहीं सोचते कि पांचवी छठी पास होकर वह कितने भी उम्र के हो जाएं काम उनको उसी के आधार पर मिलेगा। ये नहीं कि उम्र बढ़ने पर उन्हें सरकारी नौकरी में जाने का मौका मिल जाएगा। वो आज भी मजदूरी कर रहे कल भी यही करेंगे। ये परिवार की जिमेदारी है कि बच्चे को पढ़ने के लिए हमेशा दबाव बनाए।
इसलिए सभी को सोचना चाहिए कि भले ही खुद आधी रोटी खाएं लेकिन अपने बच्चों के हाथों में किताब जरूर थमाई जाए । क्योंकि यही एक राह है जिससे पुरानी पीढ़ी की अपेक्षा आने वाली पीढ़ी और बेहतर निकल सकती है। उनकी सोच को परिपक्व बना सकती है। क्योंकि शिक्षा ही मानवीय जीवन की बेहतरी का सर्वश्रेष्ठ रास्ता है।
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