वर्तमान में गुलाबी चश्मे से अतीत देखना (Rosy Retrospective Memories)

 वर्तमान में गुलाबी चश्मे से अतीत देखना 

( Rosy retrospective memories)

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जब हम बड़े हो जाते हैं ज़िंदगी की जद्दोजहद में उलझ जाते है। रोज रोज की अनगिनत जरूरतें और उसे पूरा करने की कोशिश में हम सिर्फ़ आज को जी रहे होते है। उस समय हमें अपने अच्छे पुराने दिन, पुराने दोस्त, पुराने लोग जो कभी कहीं मिले थे, पुरानी मनपसंद चीजें , पुरानी स्कूली यादें, बचपन सब बहुत याद आता है। तब का सब कुछ पता नहीं क्यों अच्छा अच्छा सा लगता है। हम सोचते हैं कि तब हम कितने ख़ुश रहा करते थे। मस्त, बिना फ़िक्र, आज़ाद मस्तमौला और बिंदास । आज की जिंदगी में बोझ और बन्धन महसूस होता रहता है। 

ये मानव स्वभाव है कि उसे हर गुजरा हुआ पल अपने वर्तमान से अच्छा लगता है।अमूमन लोग अपने अतीत को वर्तमान की अपेक्षा अधिक सकारात्मक रूप से याद करते हैं। उन्हें पिछले सभी मोमेंट्स बहुत मृदु और प्रभावपूर्ण लगते हैं जबकि वास्तविकता कठिन और जटिल। ये इसलिए होता है कि मानव पिछले वक्त को देखने के लिए एक तरह का गुलाबी चश्मा अपनी आंखों पर चढ़ा लेता है। अब इस गुलाबी पुनरावलोकन में सिर्फ  बेहतरीन सकारात्मक पलों को स्मरण किया जाता है जबकि हर उसी समय के आसपास कुछ अप्रिय या नकारात्मक हो तो उसे भुला दिया जाता है। 

जैसे उदाहरणार्थ देखें तो जो बचपन बड़ा मीठा और सुकून वाला लगता है जबकि उसकी अपनी कई परेशानियां भी साथ चलती थी। स्कूल का टेंशन, होमवर्क पूरा रखने की चिंता, माता-पिता से हर बार बेहतर बनाने की सीख के लिए खुद को तैयार करना, टीचर्स की उम्मीदों पर खरा उतरना, दोस्तों से आगे निकलने की होड़, सुबह जल्दी उठने की टेंशन वगैरह वगैरह....एक बच्चे के लिए वो अपनी ज़िंदगी भी उस समय कोई ख़ास अच्छी नहीं होती। उसकी अपनी चिंताएं फिक्र और परेशानियां होती है। इसी तरह शादी के पहले लगता है कि शादी कर लेंगे तो कुछ मुश्किलें आसान हो जाएंगी। पर जब शादी हो जाती है तो लगता है कि जब कुंवारे थे तो ज्यादा बेहतर थे। एक और उदाहरण से भी समझते हैं कि जब हम कहीं घूम कर आते है तो बाद में हम उन यादों को मधुर स्मृतियों के रूप में याद करते हैं जबकि यात्रा में हुई थकान, धन खर्च  या अन्य असुविधाओं को भूल जाते हैं।

कहने का अर्थ ये है कि ये जो स्थितियों परिस्थितियों को गुलाबी चश्में से देखने की आदत है ये ही हमें वर्तमान की अपेक्षा पिछले को ज्यादा बेहतरीन बनाती है। वक्त गुजर जाने के बाद क़ीमती लगने लगता है। हमको लगता है कि उस समय हम बहुत खुश और अच्छे थे आज की बदौलत।

लेकिन इस तरह की सोच वर्तमान के लिए अच्छी नहीं होती।  क्योंकि अगर हम बीती हुई जिंदगी और घटनाओं की बहुत अधिक तवज्जों देकर याद करते हैं । तो इससे वर्तमान में अपेक्षाएँ और बढ़ जाती है जिससे वास्तविक परिस्थिति में असंतोष पैदा होने लगता है।  हर वक्त एक जैसा नहीं होता। बदलाव ही नियति है। तो ऐसे में पुराने समय को जीने की जिद मन में पैदा करना आज से मुहं मोड़ने जैसा है। 

इसलिए आज जो है जैसा है जहां है उसमें ही खुशी और सुकून ढूंढना चाहिए। रात गई बात गई....जो बीत गया सो रीत गया। अर्थात जो गुजर गया वो हाथ से निकल चुका है। आज वर्तमान हमारे हाथों में हैं उसे ही भरपूर जीकर हम खुशी हांसिल कर सकते हैं।

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