स्त्री और उसका प्रयोग
स्त्री और उसका प्रयोग :
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ईश्वर ने पुरुष और स्त्री की रचना करते समय ये अवश्य सोचा होगा कि सृष्टि चलाने में दोनों का बराबर का योगदान होगा। तभी उसने अलग अलग गुणों से दोनों को परिपूर्ण किया। पुरुष ने तो अपने गुणों के आधार पर और अपने कार्यों से अपनी जगह बना ली है। पर स्त्री बहुप्रतिभा की धनी होकर भी अपनी मजबूत जगह के लिए दूसरों की दया की मोहताज रहती है।
स्त्री शुरू से ही बस उपभोग की वस्तु की तरह जीवन में स्थान रखने जानी वाली मानी जाती रही है। समाज उसे अपनी सुविधानुसार हर जगह उपयोग करता है। जहां भी उसे ये लगता है कि स्त्री के होने से लाभ मिल सकता है । वहां समाज स्त्री को आगे रख देता है। भले ही इसके लिए उसे स्त्री को किसी भी रूप में प्रस्तुत करना पड़े तो मंजूर है। बस फायदा मिलना चाहिए। मर्यादा और संस्कार उस समय मायने नहीं रखते जब स्त्री होने के फायदे कहीं ज्यादा दिखते हैं।
विज्ञापनों, सिनेमा, टीवी आदि में स्त्री को उसकी क्षमता और मर्यादा के विपरीत जाकर प्रस्तुत किया जाता है। अमूमन देखने में आता है कि कोई उत्पाद अगर पुरुष के प्रयोग में आने वाला है उसमें भी स्त्री को प्रदर्शन के तौर पर शामिल कर लिया जाता है। सिर्फ उसे अधिक आकर्षक और लोकलुभावन बनाने के लिए। स्त्री के होने से उस विज्ञापन को पुरूष अधिक देखेंगे और वह उत्पाद बिकेगा। उनमें भी स्त्री अर्धनग्न दिखाई जाएगी। जिसका कोई औचित्य नहीं होता। ये ही है स्त्री के उपभोग की नीति।
यूँ तो स्त्री को देवी , लक्ष्मी या अन्नपूर्णा का दर्जा दिया गया है। जिसके बिना सृष्टि की कल्पना की निरथर्क है। पर स्त्री को उसके होने का प्रमाण खुद को उन जगहों पर भी प्रस्तुत होकर देना पड़ता है जहां उसके अस्तित्व का हनन हो रहा होता है। स्त्री का सौंदर्य और कोमलता उसकी कमजोरी नहीं मजबूती है। पर समाज ने इसे ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बनाकर रख दिया है।
इसमें स्त्री की भी गलती है जो हमेशा अपने प्रिय लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरने के लिए प्रयासरत रहती है। घर सही से चले, सबको खाना सही समय पर मिले, सबके कपड़े सबको व्यवस्थित मिले, सबकी जरूरतें समय से पूरी होती रहें....ये सब उसके दिमाग में निरंतर चलता रहता है। आज स्त्री भले ही काम के लिए बाहर निकल रही है। घर का काम कामवालियां सम्भाल रही। पर फिर भी काम की चिंता औरत ही करती है। कब क्या बनेगा, कैसे बनेगा कौन कौन सा काम होयेगा वग़ैरह वग़ैरह...क्या ये परिवार के बाकी सदस्यों की जिम्मेदारी नहीं कि किसी दिन वह ये सब सोचने का काम करें....!!
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