पहले दिमाग़ को तैयार करो, शरीर अपने आप हो जाएगा
पहले दिमाग़ को तैयार करो,शरीर अपने आप हो जाएगा :
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
क्या आप सभी ये मानते हैं कि हम वहुत कुछ करना चाहते है। कुछ नया, कुछ भिन्न और कुछ रोमांचक। परंतु मन के चाहने पर दिमाग की तरफ से अंकुश लगा दिया जाता है। कभी असफलता का, कभी सामर्थ्य का, कभी परिस्थिति का, कभी समाज का वग़ैरह वग़ैरह। मतलब हम चाहते हुए भी बहुत कुछ बेहतर करने से वंचित रह जाते हैं।
2016 में एक ब्रिटिश वेट लिफ्टर Addie hall ने 500kg वजन उठाकर एक नया विश्व रेकॉर्ड बनाया था। ये एक ऐसी उपलब्धि थी जिसे वैज्ञानिकों ने भी असम्भव बताया था। कि किसी भी मानव शरीर के लिए इतना वजह उठा पाना बिल्कुल ही असंभव है। क्योंकि शरीर की भी एक निश्चित क्षमता होती है। पर एडी ने ये कर दिखाया।
इसके पीछे का सच जब एडी ने बताया तब समझ आया कि शरीर के साथ दिमाग को भी तैयार करना जरूरी है तभी कार्य सफल होगा। एडी ने बताया कि जब वो 500 किलो का वजन उठाने जा रहे थे। तब उन्होंने कुछ क्षण आंखें बंद करके एक घटना का अनुमान लगाया जिसमें उनके बच्चे एक कार के नीचे दब गए हैं और उनको उस कार को उठा कर अपने बच्चों को बाहर निकालना है। बस इसी सोच के साथ उन्होंने वो डेडलिफ्ट का चैलेंज उठाया और पूरा किया। क्योंकि उस समय उनके दिमाग में सिर्फ़ उनके बच्चे थे जिन्हें बचाने के लिए वह ये कर रहे थे और वजन उठा लिया।
हम अक्सर अपनी क्षमताओं को पहचानते हुए भी उनसे आगे जाकर बहुत कुछ करने की इच्छा रखते हैं। पर दिमाग़ सचेत करता रहता हैं।
★ स्वयं का व्यवसाय करना चाहो तो धन की कमी.....
★ नौकरी बदलनी चाहो तो आर्थिक स्थिति बिगड़ने का डर....
★ कहीं ट्रैकिंग या रोमांचकारी जगह घूमने की योजना बनाओ तो जान का खतरा.....
★ कहीं पैसे इन्वेस्ट करना चाहो या ज़मीन खरीदना चाहो, धोखा मिल सकता है.....
★ विवाह करो, पता नहीं साथी कैसा होगा उसका परिवार कैसा होगा.....
इस तरह की हज़ारों स्थितियां ऐसी है जिन्हें करने से पहले हमारा दिमाग हमें चेताता है। पर यदि हम रिस्क लेकर उसे कर लेते हैं तो परिणाम अच्छे भी मिलते हैं। दिमाग का डर या संशय व्यक्ति को कमज़ोर बनाता है। और ये कमजोरी उसके शरीर से परिलक्षित होने लगती है।
इसलिए अगर कुछ करने की ठानना है तो सबसे पहले अपने दिमाग को तैयार करना चाहिए कि मुझे ये करने में लाभ ही लाभ मिलेगा। और साथ ही मेरा शरीर इतना सक्षम है कि ये काम आसानी से फलीभूत कर सकता है। बस जैसे ही दिमाग इस काम के लिए राजी होने लगेगा। शरीर अपने आप उस तैयारी को स्वीकारने लगेगा। जब हम दिमाग़ी रूप से कमज़ोर होएंगे तो शारीरिक रूप से भी असहज और अयोग्य होते जाएंगे। शरीर दिमाग के आदेशों से काम करता है।
जब भी हम नए सिरे से व्यायाम करने की शुरुआत करते हैं।तो कोई एक एक्सरसाइज दो बार करने पर थक जाते हैं।पर दिमाग़ की तरफ से अगर ये संन्देश मिल जाये कि अगर खुद को बदलना चाहते हो तो बस एक और....फिर हिम्मत से एक और करते हैं। और यही एक और एक और एक दिन घण्टों की वर्जिश में बदल जाता है। यही है दिमाग़ का शरीर पर नियंत्रण।
◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆●◆
Comments
Post a Comment