खुशी और शांति की तरंगें

ख़ुशी और शांति की तरंगें : 

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अमूमन हम दुःखी होने पर कोई एक ऐसा साथ चाहते हैं जो हमारी बात सुनें। हमें सांत्वना दें,  हमारी समस्या का समाधान बताए। ऐसे ही हम भी दूसरों के लिए सहारा बनते हैं। जब कोई दुख -दर्द, मन की बाते हमसे शेयर करता है, तो हम उसे ढांढस देते हैं। इससे वह तो हल्का हो जाता है और हम भारी हो जाते हैंं। जबकि उनके दुख और कुछ नहीँ, बस प्रेम की कमी के कारण हैं। ऐसे में उसको तथा उस से सम्बन्धित हर व्यक्ति को प्रेम की तरंगे, शांति की तरंगें देनी चाहिए। धीरे धीरे सब ठीक होता जायेगा। लेकिन उससे हमारी शक्ति कम नहीँ होगी ।

किसी के दुख मे दुखी हो जाना, अनजाने मे उसके दुःख को और बढाता हैं। जब हमारे मन में हमदर्दी उमड़ती है तो कहते है कि बेचारा कितना दुखी है, ईश्वर ऐसा क्यों करता है। उसके प्रति बार बार बेचारा, दुखी, बदनसीब, परेशान जैसे शब्द दिमाग मे  रखने से उनका दुख और बढ़ जाता है तथा साथ ही हम भी दुखी हो जाते हैं।

ये नियम याद रखना होगा कि जिस चीज का वर्णन करेंगे, मन मे सोचेगे, वही चीज़, वही हालात बढते जाएंगे। ये नियम लगातार काम करता है जैसे धरती की चुम्बकीय शक्ति काम कर रही है। ऐसा करके हम अपना और उसका दोनों का दुख बढा रहे हैं।

हमें उसको प्रेम से भरपूर करना होगा । उसके प्रति प्रेम के शब्द कहने होंगे उसे अच्छा सोचने की ओर प्रेरित करना होगा। बेचारा की बजाय किस्मत वाला, दुखी के बजाय सुखी , बदनसीब के बजाय भाग्यशाली, परेशान के बजाय मस्त जैसे शब्द अपने मन मे उनके प्रति रखो चाहे वह कितने भी निम्न स्तर पर हो इससे वह अपने दुखों से बाहर आने लगेगा साथ ही  हम भी उसे देखकर सुखी महसूस करने लगेंगे। 

हमारे शब्द एवं संकल्प बूमरैंग  का काम करते हैं। वे अच्छे हो बुरे हो  या नफरत से भरे हो चाहे प्रेम से भरे  हो, वे उल्टे हम पर ही आकर असर करेंगे। कुछ  बोलने से पहले मन ही मन शब्दो की जाँच कर लें। शब्द दिल दुखाने वाले तो नहीँ हैं, लड़ाई कराने, उकसाने वाले तो नहीँ है। किसी को निराश करने वाले तो नहीँ हैं। चिढाने वाले  तो नहीँ हैं । चोट पहुँचाने  वाले तो नहीं हैं। शब्दों का निर्माण मन मे होता है। इसलिए मधुर शब्दो का निर्माण किया जाए।

हम तो केवल मन मे सोच रहे हैं। उसे बस गलती के लिए कोस रहे हैं। कुछ बोल तो नहीं रहे ना। हमारे मन की बात तो हमारे मन मे ही हैं। मैनें क्या गलती की ? किसी का क्या बुरा किया ? ये सब किसी के प्रति प्रेम नहीं है। ये सब जो बाते मन मे निरंतर दोहराई जाती हैं वे एक ना एक दिन हकीकत बन जाती हैं। अगर  किसी के लिये बुरा सोचा जा रहा है तो हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं। गलत विचार सब से पहले हमें ही  रोगी बना देते हैं जिस से अनेकों परेशानियां खड़ी हो जाती हैं।

इसलिये सदैव शान्ति और प्रेम के विचार  प्रवाहित करना चाहिए, चाहे सामने वाला कितना भी नीच और दुष्ट प्रवृत्ति का हो। हमें अपना स्तर नियत और स्थिर रखने है। 

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