ये दुःख कम क्यों नहीं होता

ये दुःख कम क्यों नहीं होता : 

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कोई ये बताए कि कम्बख़्त

ये पहाड़ सा दुःख कम क्यों नहीं होता

चलो थोड़ी खुशी ढूंढ लाएं

ऐसा कर लेने का मन क्यों नहीं होता

पीले पड़े पत्तों की माफ़िक 

कमज़ोर होकर टूटते हुए गिरने लगे हैं

जो फिर से हरा भरा कर दे

पास इक बसंती मौसम क्यों नहीं होता

मोह खत्म होने लगा हर चीज़ से

अब बस वीरानी अच्छी लगने लगी हैं 

जो झिंझोड़कर अस्थिर कर दे

ऐसा धड़कनों में कंपन क्यों नहीं होता

सब्र इतना भी ठीक नहीं होता

कि इच्छाएं कुचलकर मरने लग जाएं

थोड़े से में ज़्यादा सुकूँ ढूंढ लें

ऐसा सरल-सीधा जीवन क्यों नहीं होता

               ~ जया सिंह ~

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